अध्यात्म (Spiritualism)

क्यों हैं दिवाली सिद्धरात्रि?

कार्तिक माह की अमावस्या, दीपावली का महापर्व. यह सिर्फ उत्सव की ही रात्रि नहीं हैं, आध्यात्म जगत में यह रात्रि इतनी अधिक महत्वपूर्ण हैं के इसे “सिद्धरात्रि” कहा जाता हैं. क्या हैं ऐसा इस रात्रि में जो ये मन्त्रों को सिद्ध कर देने का सामर्थ्य रखती हैं?

दिवाली क्यों मनाते हैं इसके कुछ कारण जो हम सब जानते हैं –

  1. इस दिन श्रीराम सीताजी और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे इसलिये उनका स्वागत किया गया और माँ लक्ष्मी की आराधना की गयी कि, अयोध्या में अब सुख समृद्धि का राम राज्य रहें।
  2. इस दिन समुद्र मंथन से माँ लक्ष्मी प्रकट हुई थी।
  3. किसान खरीफ की फसलें काट चुकें हैं, अच्छी पैदावार हैं उसका उत्सव मनाया जाता हैं। माँ लक्ष्मी का धन्यवाद किया जाता हैं की ऐसे ही सुख समृद्धि बनाये रखें।
  4.  सर्दियाँ आने से पहले घर की अच्छे से साफ़ सफाई हो जाती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम व्यवस्था है ये।

चलिए ये सभी तर्क अपने आप में इतने महत्वपूर्ण तो हैं ही कि इनके आधार पर दिवाली जैसा बड़ा पर्व मनाया जा सकता हैं। परन्तु त्यौहार महत्वपूर्ण घटनाओं की स्मृति का उत्सव ही नहीं होते बल्कि बहुत गहरा आध्यात्मिक आधार लिए होते हैं।

तो क्या हैं दिवाली का महत्व?
महृषि पतंजलि ने योग सूत्र में इसकी जानकारी दी हैं।
एक वर्ष को दो भागों में बांटा गया हैं।
साधना पद – जब सूर्य दक्षिणायन आता हैं
कैवल्य पद- जब सूर्य उत्तरायण आता हैं

सूर्य के दक्षिणायन आने से ले कर उसके पुनः उत्तरायण होने तक की अवधि साधना के लिए श्रेष्ठ अवधि होती हैं। साधना पद का पूर्ण लाभ लेने के ये तीन नियम हैं –
तप – एकाग्रचित्त प्रयास (concentrated effort)
स्वाध्याय – प्रति दिन ध्यान (meditation) के लिए बैठना। जिस से की एकाग्रचित्तता में बढ़ोतरी हो और परिश्रम का तनाव दूर हो जाये।
ईश्वर प्राणिधान – दिव्य ऊर्जा स्त्रोत (परमात्मा) को पूर्ण समर्पण यानि स्वयं को उससे एकाकार अनुभव करना।

यही वो अवधि हैं जब हमारी ग्रहण कर सकने की क्षमता (receptivity) सर्वाधिक होती हैं, यही सर्वोत्तम समय हैं “साधना में गहरा उतरने का।”

कार्तिक अमावस्या, दक्षिणायन-सूर्य के 6 माह का केंद्र हैं अर्थात जब साधना पद अपने चरम पर होता हैं। यानि साधना की दृष्टि से हमारी ग्राह्यता (receptivity) सर्वाधिक होती हैं, इसीलिए दिवाली की रात्रि सिद्धरात्रि हैं- किसी भी मंत्र-अनुष्ठान के लिए सर्वोत्तम।

ये समय साधना करने का हैं फल प्राप्त करने का नहीं इसीलिए पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण आने तक बाणों की शैय्या पर भी प्रतीक्षा करना स्वीकार किया था। साधना का असर/फल प्राप्त करने का समय सूर्य के उत्तरायण होने पर आता हैं।

उत्सव और दीप-प्रज्वल्लन क्यों?

पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध इस दौरान सूर्य की किरणें कम प्राप्त करता हैं, यह भी एक कारण होता हैं की लोग इन दिनों स्वयं को बुझा-बुझा (depressed) सा महसूस करते हैं।
इस समय स्वयं को उत्साहित बनाये रखने में उत्सव और दीपोत्सव सहायक सिद्ध होते हैं।

यद्यपि इस समय, जब मन बाह्य पदार्थों से अलग (detach) सा होने लगता हैं, इसे हम dullness समझते हैं पर इसका लाभ यह हैं कि मन का साधना में एकाग्रचित्त हो पाना अपेक्षाकृत सहज हो जाता हैं क्योंक़ि बाह्य वस्तुओं का आकर्षण मंद पड़ रहा होता हैं, छुपा हुआ आशीर्वाद (blessing in disguise) है सर्दियों की ये dullness – ध्यान में गहरा उतरने में सहायक!

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