क्या करूँ…कंट्रोल नहीं होता !
क्या खाना चाहिए — पता है।
कब खाना चाहिए — ये भी पता है।
पर क्या करें… “ ख़ुद को रोक नहीं पाते ”
यही उलझन आपकी भी है तो इसका मतलब है कि आपने अपने घर (शरीर) के द्वार कई अनचाहे मेहमानों के लिए खोल रखें हैं जैसे — मोटापा, डायबिटीज, आर्थराइटिस, अनीमिया वग़ैरह वग़ैरह!
वह शत्रु, जो आहार के मामले में आपकी लापरवाही का फायदा उठाने में सबसे आगे है वह है — मोटापा। यह दबे पाँव आपके शरीर में प्रवेश करता है और अपनी जड़ें बहुत गहरे तक जमा लेता है। और फिर धीरे-धीरे अपने कुनबे के कई और रोगों को बुला कर आपके शरीर में स्थापित कर देता है।
ऐसा नहीं है कि आपको इस शत्रु की घुसपैठ की आहट नहीं होती, बिलकुल होती है! पर इस शातिर शत्रु ने पहले ही आपकी टीम के कुछ सदस्यों को अपनी तरफ कर लिया होता है और यही वजह है कि इसके होने का आभास होते हुए भी आप इसका अपने शरीर में “रचने-बसने का कार्यक्रम” देख कर भी अनदेखा करते चले जाते हैं। आपके शरीर का हर अंग आपकी टीम है और शत्रु के सामने आपकी इस टीम की सबसे कमजोर कड़ी साबित होती है आपकी स्वाद-इन्द्री यानी की जीभ ! यह बड़ी आसानी से शत्रु के हाथ का खिलौना बन जाना स्वीकार कर लेती हैं और आपके शरीर में रह कर, आपको बरगलाते रहने का पूरा प्रबंध करती हैं।
आपकी इस टीम का मैनेजर है — आपका मन। यह तब आपकी दूसरी कमजोर कड़ी बन जाता है जब यह अपनी ही टीम में पक्षपात करने वाले बॉस की तरह व्यवहार करने लगे ! यानी टीम में से “किसी एक” को यह अपनी चहेते मेंबर के रूप में देखने लगता है। उसकी फरमाइशों को पूरा करते वक़्त अधिक सोच विचार नहीं करता यहाँ तक के बाकि टीम मेंबर्स का हित-अहित तक अनदेखा करने लगता है।
आप इसे इस तरह भी समझ सकते हैं, अगर किसी के दो बच्चे हैं और बतौर माँ, वह सिर्फ़ एक बच्चे के शौक़ पूरे करने में लगी रहती है और दूसरे बच्चे की ज़रूरतों की भी अनदेखी करें तो वह माँ “ग़ैर-ज़िम्मेदार” कहलायेगी। सहमत?
ठीक इसी तरह हमारे शरीर के सभी अंगों के प्रति हमारा एक जैसा दायित्व बनता है। अब अगर सिर्फ़ “जीभ (स्वाद)” का लाड़ दुलार करने में हम अनावश्यक भोजन करते रहेंगे तो यह हमारे शरीर के बाक़ी हिस्सों के साथ अन्याय होगा। एक बच्चे के मोहपाश में बँधी माँ अपने अन्य बच्चों को ज़बरदस्त मुसीबत में डालने लगती हैं। नतीजा यह के उसके अपने बाक़ी बच्चों के नाज़ुक कन्धों पर जबरदस्त भार आ जाता है –
- पेट यानी पाचन तंत्र पर ग़लत भोजन को पचाने का भार
- घुटनों पर बढ़े हुए वजन को उठा कर चलने का भार
- हृदय पर इस अनावश्यक बढ़े हुए शरीर की हर कोशिका को रक्त सप्लाई करने का भार
- थोड़ा सा अतिरिक्त चलने, सीढ़ियाँ चढ़ने पर श्वसन तंत्र पर भार
- आँखों पर ख़ुद के बेडौल रूप को शीशे में देखने का भार
लीवर हो या पेनक्रियाज, हमारे शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं है जिसे जीभ की मनमानियों का ख़ामियाज़ा नहीं भुगतना पड़ता! वे अंग अपना दुखड़ा ले कर किसके पास जाएँ? आपके पास आना चाहते हैं, पर आपको हर समय सिर्फ़ जीभ को गोद में बैठा कर दुलारते हुए देखते हैं तो मायूस हो कर चुप रह जाते हैं… आवाज़ देते भी हैं तो आप जीभ की किलकारियों में इतना खोये होते हैं कि उनकी आवाज़ आप आसानी से अनसुनी कर देते हैं।
ये सब आपसे छुप कर नहीं हो रहा होता। आपको अच्छे से पता चल रहा होता है कि आपकी नाक के नीचे आपकी जीभ शत्रु के साथ मिल कर कैसे आपके शरीर के साथ खिलवाड़ कर रही है पर ऐसे में सारी जानकारी होने के बावजूद भी अक्सर हम में से अधिकांश लोगों की हालत उस योद्धा जैसी होती है जिसके पास हथियार भी हैं, चलाने भी आते हैं , सामने शत्रु ललकार भी रहा है… योद्धा जीतना भी “चाहता” है…पर लड़ने का “mood” नहीं बना पा रहा! मन कह रहा है कि शत्रु को पहचान तो लिया ही है, हथियार भी पड़े ही है तो कभी भी चला लेंगे. देखते हैं…. कल से लड़ेंगे इस से।
“कल” के साथ सबसे दिलचस्प बात यही है कि — वह कभी नहीं आता। हाँ, “आज” हमेशा आता है!
अब अगर आपने स्वाद- इंद्री यानी की जीभ पर नियंत्रण हासिल करने का सोचा भी तो आपकी टीम की दूसरी कमजोर कड़ी यानी आपका मन और भी “उच्च स्तर का षड्यंत्र” तैयार करता है। वह भावनाओं का कुतर्कों के साथ गठबंधन कर के सच्चा और आदर्श दिखने वाला लेकिन वास्तव में एक कुटिल और झूठा फलसफा तैयार करता है और आपके सामने पेश करता है. मन कहेगा, “आप जैसे भी हैं, आपको अपने आप से प्यार करना चाहिए” इस मीठी बात में लपेट कर वह आपको मोटापे जैसे विष को निगलते रहने के लिए मानसिक रूप से तैयार करता है ! कई लोग जो इस मीठे विष के शिकार हो चुके होते हैं, जो कि जानते हैं कि उनकी स्वास्थ्य रिपोर्ट उनकी BMI (मोटापे को रोग के स्तर पर नापने का स्केल) को Red Zone यानी “खतरनाक अवस्था” में दर्शा रही है पर फिर भी वे गर्व से कहते हैं — “मुझे अपने शरीर के हर एक इंच से प्यार है” — क्योंकि मन का परोसा हुआ मीठा विष बुद्धि पर असर कर चुका है. लेकिन जब इन्हीं लोगों को बुख़ार होता है तो वे दवाइयां खोजते हैं…माथे पर गीली पट्टी रखते हैं, तब उनका मन उन्हें यह सलाह देने नहीं आता कि “आपको अपने शरीर के बढे हुए तापमान की हर डिग्री से प्यार करना चाहिए!!”
ज़रा ठहर कर चेक कीजिये की मन का यह प्यार शरीर से है या आलस्य से! अपने शरीर से प्यार करने का मतलब यह नहीं है कि उस शरीर में घुस आने वाले शत्रुओं से भी इसलिए प्यार करने लगें क्योंकि “वे अब शरीर के अंदर आ गए हैं” भले ही वे अंदर आ कर हमें धीमी मौत ही देते रहें। घर हो या शरीर स्वागत मित्रों का ही किया जाता है.
मोटापा हो या इन्फ़ेक्शन/बुख़ार शरीर में घुसपैठियों को इजाज़त देना हमेशा घातक ही सिद्ध होता है। इसलिये अपनी टीम पर नकेल कस कर रखिये “मन और जीभ” को मिल कर ऐसा षड्यंत्र रचने की इजाज़त मत दीजिये जो आपको अपना हित देखने से रोक दे !
याद रखिये,
स्वस्थ रहना — हर शरीर का अधिकार है।
और, आपका शरीर इसके लिए पूरी तरह, सिर्फ़ और सिर्फ़ — आप पर निर्भर है।