साँसों से बंधी हैं सुकून की डोर
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जीवन में आने वाली परिस्थितियों को दो श्रेणियों में रख सकते हैं एक वे, जब हमें प्रतीक्षा करनी होती हैं और दूसरी वे, जहाँ हमें निर्णय लेने होते हैं घड़ियाँ प्रतीक्षा की हो या निर्णय की, दोनों में ही मन का स्थिर और शांत रहना बहुत जरुरी हैं। धैर्य के बिना की गयी प्रतीक्षा, और विवेक के बिना लिए गए निर्णय, दोनों ही नुकसानदेह साबित होते हैं! यानि हर परिस्थिति का सामना करना के लिए हमें मन को स्थिर और शांत बने रहने की ट्रेनिंग देनी हैं। कैसे दें?
यहाँ एंट्री होती हैं साँसों की। हमें ये ट्रेनिंग डायरेक्ट मन को देनी ही नहीं हैं। ये ट्रेनिंग हम अपनी साँसों को देंगे। एक बार अगर हम ने अपनी साँसों को संभाल लिया तो मन को वे अपने आप संभाल लेंगी।
सांसों का संभालने का मतलब हैं के आपको ये दोनों काम अच्छी तरह से आने चाहिये :
1. साँसों का साक्षी होना 2. और साँसों को नियंत्रित करना
१. साँसों का साक्षी होना
एक स्थान पर एकाग्र हो कर बैठ जाइये और अपनी साँसों को ध्यान से महसूस कीजिये। जैसे भी वे आ रही हैं, उनके आने जाने के तरीके, लय या स्पीड को बदलने की कोशिश मत कीजिये। सिर्फ देखिये — जो हो रहा हैं — उसे सिर्र्फ देखिये।
ये ऐसी हैं तो इसका क्या मतलब हैं — ये भी मत सोचिये
न कोई तुलना न कोई निष्कर्ष, न कोई विश्लेषण, कुछ नहीं सोचना सिर्फ ऑब्ज़र्व करना हैं।
यह ध्यान की अवस्था हैं, इसमें आपके “करने” के लिए कुछ नहीं होता। आप बस शांति से, सौम्यता से देख रहे होते हैं।
यह विधि आपकी एकाग्रता को बढ़ाती हैं। यह तकनीक हमें धैर्य से प्रतीक्षा करने की ट्रेनिंग देगी।
2. कॉन्ससियस ब्रीथिंग यानि सजग ध्यान :
अब आपको अपनी साँसों का सिर्फ साक्षी नहीं रहना हैं बल्कि इस प्रक्रिया में actively participate करना हैं। अब आप दर्शक की नहीं बल्कि सूत्रधार की भूमिका में हैं।
Conscious Breathing यानि, अब आप एक निश्चित तरीके से अपनी साँसों को नियंत्रित करेंगे, उन्हें एक दिशा देंगे.
कॉन्सेसियस ब्रीथिंग के द्वारा हम साँसों के Therapeutic Zone में प्रविष्ट होते हैं।
Therapeutic Zone यानि वह स्थिति जिसमें आपके मन और शरीर का रूपान्तरण (Transformation) शुरू होता हैं। अवस्था में एक मिनट में ली जाने वाली साँसों की गिनती चार से आठ के बीच रखनी होती हैं। हम इस में से 6 सांस प्रति मिनट चुन लेते हैं और प्रैक्टिस शुरू करते हैं। इस दर से सांस लेना यानि सांस अंदर लेने में 5 सेकंड लगेंगे और अगले 5 सेकंड में सांस बाहर छोड़नी हैं।
अगर आपको लगे के पांच सेकण्ड्स बहुत ज्यादा है और आप इतनी देर तक सांस नहीं ले पा रहें है तो आप इन सेकण्ड्स को कम कर सकते हैं, 5 की बजाय 4 सेकण्ड्स की अवधि में सांस अंदर लेने और अगले चार सेकण्ड्स में सांस बाहर छोड़ने की प्रैक्टिस कीजिये।
यह प्रैक्टिस 5 -7 मिनट तक कीजियेगा और फिर देखिये के कैसा महसूस होता हैं। आप कितना धीमे सांस ले सकते हैं अपनी ये क्षमता चेक करनी हैं पर खुद को स्ट्रेस में नहीं लाना हैं। और न ही साथ वाले के साथ किसी कम्पटीशन में जाना हैं। रोज प्रैक्टिस से आपकी अपनी क्षमता बढ़ती जाएगी।
ये दोनों तरह की क्रियाएं करनी किस वक़्त हैं?
- सांस लेने की जो सक्रीय विधि हैं यानि जिसमें हमें एक मिनट में पांच-छह सांस लेने की कोशिश करनी हैं, ये क्रिया आपको तब करनी हैं जब आप शांति से बैठ सकें, जब आपके आस पास कोई कोलाहल न हों. इसके लिए सुबह उठने के तुरंत बाद का और रात को सोने से जस्ट पहले का समय सर्वोत्तम है।
2. साँसों का साक्षी होना वाली जो विधि हैं, उसे आपको अपने दिनचर्या के कामों के साथ जोड़ना हैं।
- जब आप चल रहें हैं तो अपनी साँसों अपर ध्यान दीजिये। देखिये आप चलते समय कैसे सांस लेते हैं – बस ऑब्ज़र्व करना हैं – साक्षी होना हैं।
- चलते समय अपनी साँसों के साथ कदम ताल मिलाने की कोशिश कीजिये।
- कभी जब आप म्यूजिक सु रहें हों, तो ऑब्ज़र्व कीजिये आपकी साँसे कैसे चल रहीं हैं ? चैक कीजिये क्या गाने के मूड के हिसाब से आपकी साँसों का पैटर्न बदलता हैं ?
- कभी जब आप ट्रैफिक जैम में फंसे हों तो अपनी साँसों को नोटिस कीजिये वे कैसे आ जा रहीं हैं ?
- अगर आज कोई आपको भला बुरा कह गया हैं , आप विचलित हैं तो चेक कीजिये के साँसे कैसे आ जा रही हैं ,
- आपको किसी पर बहुत गुस्सा आया हैं, आप विचलित हैं तो चैक कीजिये
- अगर आज आपकी तारीफ हुई हैं, आप बहुत खुश हैं तो चेक कीजिये के साँसे कैसे आ जा रहीं हैं
- आपको किसी पर बहुत प्यार आ रहा हैं, तो चेक कीजिये .
इन सभी मौकों पर आप पाएंगे के साँसे एक लय में नहीं हैं !!
इन सभी मौकों पर— जब भी, आप पाएं के साँसे लय में नहीं हैं तो अपनी साँसों को नियंत्रित करने का अभ्यास कीजिये.
यह अभ्यास आपके मन की बागडोर को भावनाओं के हाथों में जाने से रोकेगा
जैसे ही हम कुछ महसूस करते हैं, हार्मोन्स एक्टिव हो जाते हैं भावनाओं का तेज प्रवाह सब कुछ खुद में समा लेने को आगे बढ़ता हैं,
साँसे अपनी लय खोने लगतीं हैं, और दिमाग में सब अस्त व्यस्त हो जाता हैं .
ठीक इसी समय, अगर आपने अपनी साँसों को नियंत्रित कर लिया तो ये लयबद्ध साँसे आपके मन की बागडोर को थाम लेंगी और आपकी चेतना को, आपकी निर्णय क्षमता को पूरी सुरक्षा के साथ विवेक के पास पहुंचा देंगी।
विवेक यानि वैचारिक स्पष्टता !
विवेक यानि वह स्थिति जब दिमाग की टेबल पर सारी फाइल्स बिलकुल अरेंज्ड रखी हों और दिमाग उन सबका इस्तेमाल कर पाए.
- इनमें से एक फाइल होती हैं आपके अब तक के अर्जित ज्ञान की
- एक फाइल होती हैं आपके निजी अनुभवों की
- एक फाइल होती हैं इस समय महसूस हो रही भावनाओं की
- एक फाइल होती हैं “आज की परिस्थिति” और उन “पिछले अनुभवों वाली परिस्थिति” में अंतर दिखाने वाली (ताकि आप पूर्वाग्रहों से ग्रसित न हों जाएँ)
ऐसी ही कई छोटी बड़ी लेकिन महत्वपूर्ण जानकारियों वाली फाइल्स दिमाग देख पाता हैं और सबका पक्ष देख समझ कर सही निर्णय ले पाता हैं।
दिमाग के इस ऑफिस को सुव्यवस्थित करने का, इसे सुव्यवस्थित “रखने” का काम करती हैं आपकी संतुलित और लयबद्ध साँसे।
साँसों को साक्षी हो कर देखना और सक्रीय हो कर रेगुलेट करना — ये दोनों अभ्यास आपको जीवन की उन दोनों परिस्थितयों के लिए तैयार करते हैं, जिनकी बात हमने शुरू में की थी.
जब आप सक्रीय हो कर अपनी साँसों को होल्ड करना सीखते हैं तो वस्तुतः आप अपने मन को धैर्य की ट्रेनिंग दे रहे होते हैं।
- आप उसे ठहरना सीखा रहें होते हैं
- आप उसे ठहराव के वक़्त “शांत” रहना सीखा रहें होते हैं
- आपका मन यह अनुभव कर पाता हैं के ठहराव में आकुलता नहीं, आनंद हैं !
अब, जब जीवन में— ठहरने की, प्रतीक्षा करने की स्थिति आएँगी तो उसे ये कला आती होगी क्योंकि आप उसे सीखा चुके होंगे !
जब आप काम करते समय साँसों का साक्षी रहने का अभ्यास करते हैं तो आप कर्म करते समय “तटस्थ रहने का अभ्यास” करते हैं। यानि जब आप परिस्थति का सामना कर रहें हों , जब आप पर उस परिस्थिति में शामिल रहने का दबाव हो, जब आप पर जिम्मेदारी हों उस समय, वह काम करते हुए भी उस स्थिति से अलग हट कर कैसे सोचना हैं — आप ये ट्रेनिंग अपने मन को देते हैं।
“स्थितप्रज्ञता” ये शब्द सुना हैं न। स्थिति में होते हुए अपनी प्रज्ञा को जागृत रखना। प्रज्ञा यानि विवेक। यहीं से होती हैं स्थितप्रज्ञ बनने की शुरआत.
साँसों को साक्षी हो कर देखना और सक्रीय हो कर रेगुलेट करना — ये दोनों अभ्यास आपको हर रोज करने हैं !
जैसे आप रोज दांत ब्रश करते हैं, दो चार दिन दांत ब्रश कर लिए हैं अब महीने दो महीने की छुट्टी!! ऐसा हम नहीं सोचते न क्योंकि हमें पता हैं के सही डेंटल केयर का मतलब हैं रोज ब्रश करना! ऐसे ही सही मेन्टल केयर का मतलब हैं रोज मैडिटेशन करना! डेंटल केयर आपकी मुस्कराहट को खूबसूरत बनाती हैं और मेन्टल केयर आपके मन की मुस्कुराहटें बनाये रखती हैं!
आप अपनी साँसों पर कितना नियंत्रण रख पाते है यही तय करेगा के आप अपनी जिंदगी पर कितना नियंत्रण रख पाएंगे। जैसे आपकी साँसे चलेंगी वैसी ही आपकी जिंदगी चलेगी।
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