“कहानियाँ…” बस कहानियाँ नहीं होती !
‘कहानियाँ’…वही, जिनसे आपके नन्हें मुन्नों को बहुत प्यार होता हैं…और जिनके बिना नींद ही नहीं आती. कहानियाँ कुछ ऐसी दिखती हैं – हँसने खिलखिलाने की बातें…सपनीली दुनिया की सैर…! पर वास्तव में कहानियाँ रच रही होती हैं – आपके बच्चे की सोच! आपके बच्चे का दृष्टिकोण ! कहानियाँ…bed time stories !
कहानियों को मामूली ना समझें। आज जो कहानियाँ आप उनके लिए चुन रहीं हैं वे कल उनके ज़मीर की आवाज (inner voice) बनने वालीं हैं ! उनकी आँखों में टिमटिमाते तारें देखें हैं जब आप उन्हें कहानी सुना रहे होते हैं… कहानी की हर बात उन्हें अचरज और उस पर यकीन दोनों एक साथ दे रही होती हैं। वो कहानियाँ जिन्हें सुन कर हर रात आपके नन्हें-मुन्ने निंदिया रानी की गोद में समा जाते हैं और यही वो वक़्त होता हैं जब नन्हें दिमाग की नन्ही-नन्ही वायरिंग उनके सोच के मजबूत सर्किट तैयार करने में जुट जाती हैं।
रंग बिरंगी कहानियों की किताबों से सजा है बाजार…और भोली-भाली सी बाल-कविताओं का तो कहना ही क्या ! पर प्यारे प्यारे इन शब्दों के पीछे कैसी सीख छुपी हैं ये परखना बहुत जरूरी हैं। कुछ उदाहरण देखतें हैं –
Johny, Johny,Yes papa?
Eating sugar? No papa.
Telling lies? No papa.
Open your mouth Ha ha ha!
सबसे पहली कविता जो बच्चों को सिखाई जाती हैं। बड़ी भोली सी शरारत हैं इसमें।
पर क्या सीखा जाती हैं ये कविता?
– झूठ बोलना (और बिना झूठ को गलत ठहराए ख़त्म भी हो जाती हैं)
असर – “इतना झूठ तो चलता हैं”
सिंड्रेला की कहानी : सौतेली माँ हमेशा बुरी होती हैं। (एक नजरिया बनता है जो आगे जा कर एक पूरे समाज की सोच में तब्दील होता है)
अगर आपके साथ गलत हो रहा हैं तो आपको इंतज़ार करना होगा की कोई आएगा और आपको उस बुरी स्थिति से निकाल ले जायेगा, इस कहानी में सिंड्रैला ने अपने लिए कोई साहस नहीं दिखाया।
असर – दुःख सहना, ‘बेचारे बने रहना’ ही नियति हैं जब तक की कोई आपको बचाने न आये।
ऐसी ही कहानी है रुपेन्ज़ेल की — कैद में फंसीं राजकुमारी जिसे बचाने आखिर एक राजकुमार आता हैं।
स्नो वाइट की कहानी – “दर्पण बता सबसे सुन्दर कौन ??” और बाह्य सौंदर्य की डाह में जलती सौतेली माँ और उसके षड्यंत्रों की कहानी।
डिज़्नी प्रिंसेस (disney princess) की हर कहानी में हैं एक बेचारी राजकुमारी और किसी राजकुमार का इंतज़ार ! जो आये और बचाये। गोरे गुलाबी रंग और सुनहरें बालों वाली ये नायिकाएँ हमारी नन्हीं राजकुमारियों के मन में बस जाती हैं और साथ ही बस जाता हैं ये विचार की हर मुश्किल से निकालने आता हैं एक राजकुमार। अपने लिए खुद संघर्ष करना भी कोई विकल्प हो सकता हैं ये तो किसी ने बताया ही नहीं। और इसीलिए ऐसा करना “असामान्य बात” की श्रेणी में चला जाता हैं। और हमारे नन्हें राजकुमार, उन्हें भी कहानियों ने बताया होता हैं कि राजकुमारियाँ होती हैं कहीं… बहुत दुखियारी सी जो इनका इंतज़ार करती हैं की वे आये और उबार लें। और कल के दिन जो कहीं इनके जीवन में कोई कंधे से कन्धा मिला कर चलने वाली आ गयी तो फिर बहुत से राजकुमार इसे अहम् पर चोट समझ कर तिलमिलायें घूमते हैं।
ये सिर्फ चंद उदाहरण हैं। पर हर रोज हमारे बच्चे ऐसी अनेक कहानियाँ और कवितायेँ पढ़ते सुनते हैं। कहानियाँ सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं हैं ये हमारे बच्चों का दृष्टिकोण विकसित कर रही होती हैं। इसलिए इनका चुनाव बहुत सोच समझ कर करना जरूरी हैं। बचपन में सुनी/पढ़ी कहानियाँ पूरे वैचारिक तंत्र (thought system) का ख़ाका (frame) तैयार कर रहीं होती हैं। इनके मनोवैज्ञानिक महत्व को समझने के कारण ही पंचतंत्र की कहानियों का आज भी कोई मुकाबला नहीं हैं।
कहानियों को मामूली ना समझे ये आपका लिए एक बहुत महत्वपूर्ण औजार सिद्ध हो सकती हैं जिसकी सहायता से आप अपने बच्चों को वो सीखा सकती हैं जो सिर्फ “लेक्चर” दे कर सीखाना संभव नहीं हो पाता। इस काम के लिए कहानियाँ पढ़ के सुनाने से ज्यादा फायदेमंद साबित होता हैं खुद कहानियाँ बनाना ! बच्चे के जीवन में क्या चल रहा हैं उसकी कोई उलझन हो या उसके व्यवहार में कोई बदलाव जो आप लाना चाहती हो ये सब कहानियों से किया जा सकता हैं। अपनी और अपने लाडले की उस ख़ास जरुरत को आपसे अच्छा कौन समझेगा… इसलिए जब जैसी जरुरत वैसी कहानी !
यकीन मानिये ये छोटी छोटी कहानियाँ नन्हें नन्हें बच्चों की छोटी-बड़ी कई उलझनें सुलझा सकती हैं। बस आपको पता होना चाहिए की इस से काम कैसे लेना हैं। “कैसे” इसके बारे में अगली बार बात करेंगे। story