परवरिश (Parenting)

सुनिये शिकायतों के पीछे का सच।

छुट्टियों का आज तीसरा दिन है। 5 साल का सोनू गंभीर मुद्रा में माँ के पास आ कर बोला, मम्मी मुझे आपसे कुछ बात करनी है। ओह मेरा छोटा सा बच्चा और इतनी गंभीरता भरी आवाज़! क्या हुआ होगा! अचानक ही बच्चों के साथ होने वाली अनहोनी घटनाएं दिमाग में कौंध गयीं। भगवान का शुक्र है कि वो मुझसे बात करना चाहता है, किसी डर, किसी दबाव में नहीं आया। फ़ौरन सब काम छोड़ कर मैं उसके पास बैठ गयी। हाँ बताओ सोनू क्या हुआ..?

मम्मी दीदी तो परसों भी अपनी फ्रेंड के यहाँ गयी थी खेलने फिर कल उसकी वाली मूवी क्यों लगायी आपने? आज फिर उसकी फ्रेंड आएगी शाम को खेलने उसके साथ…! सब कुछ दीदी के लिए ही करते हो आप तो…! दीदी को तो…

ओह्ह ये जरूरी बात करनी थी तुम्हें! हद है। वही सारा दिन चलने वाली शिकायतें हैं ये तो। इसके लिए इतना क्या सीरियस मुँह बनाया था। तंग आ गयी हूँ मैं कितना भी कर लूं। कभी इसकी शिकायत कभी उसकी शिकायत चालू ही रहती है… दीदी खेले उसमें तुमको क्या दिक्कत है? दो बच्चे आपस में मिलजुल के नहीं रह सकते… और भी जाने कितनी देर बोलती रहती मैं तभी सोनू पर नज़र गयी जहाँ मेरी इस प्रतिक्रिया के प्रति पीड़ा भरी हैरानी थी उसकी आँखों में.. जैसे कह रहा हो की ये समझे हो आप…!!

मैं बोलते हुए वहीं रुक गयी…. नन्हें के शब्द जो नहीं समझा पाए थे वह सब नन्ही आँखों ने समझा दिया। सोनू आप बोर हो रहे हो… दीदी की फ्रेंड आती है तो दीदी आपके साथ नहीं खेलती, दीदी जो मूवी देखती है उसमें आपको मज़ा नहीं आता (क्योंकि समझ ही नहीं आती)

हाँ मम्मा, मैं वही तो कह रहा हूँ… हैरान सोनू अब अपनी बात समझते देख रुआंसा हो गया। हम्म.. तो हम प्लान करते हैं सोनू को क्या करना चाहिए। माँ-बेटे जो अब तक कड़वी बहस में थे, अब एक टीम की तरह प्लानिंग कर रहे थे।

यही है बात, बच्चों की शिकायतें उनके “बुरा इंसान” होने की निशानी नहीं हैं बल्कि उनकी उलझने हैं जिन्हें व्यक्त करने के लिए उनके पास बढ़िया शब्दकोष नहीं होता, उनको सही समय और आपके सही मूड में होने की परख करनी भी नहीं आती पर क्या आपसे बात करने के लिए उन्हें इतनी सारी तैयारी की आवश्यकता होनी चाहिए? Sibling rivalry जैसा शब्द आजकल बहुत प्रचलन में हैं पर इसकी शुरुआत ज्यादातर ऐसी साधारण परिस्थितिओं को उलझा देने से होती है। बच्चा इसलिए शिकायत नहीं करता कि वो किसी को खुश देख कर जल रहा है या की वह अपने भाई/बहन को दुखी देखना चाहता है वह शिकायत इसलिए करता है कि उसकी कुछ जरूरतें हैं जो अधूरी हैं। वो क्या कह रहा है और वह क्या चाह रहा है, के फर्क को पहचानिये। वो जो कह रहा है उसके शाब्दिक अर्थ को पकड़ कर उसे नीचा मत दिखाइए कि तुम स्वार्थी हो या तुम्हें तो अभी से कोई अच्छा नहीं लगता आगे चल के क्या करोगे वगैरह वगैरह। जहर होते हैं ये शब्द।

उसके साधारण शब्दों को नहीं, उसके चेहरे की गंभीरता को, उदासी को पढ़िए। उनको सुलझाना सिखाइये अपनी मुश्किलों को पर बिना उन्हें बुरा महसूस करवाए। उनकी इस पल समस्या उनको ज़िन्दगी की बहुत बड़ी समस्या लग सकती है चाहे वो आपके लिए छोटी सी बात हो पर इस से उनके लिए उस उलझन की गम्भीरता कम नहीं हो जाती। इसलिए उनकी उलझनों को फालतू बातें कभी न कहें। मुश्किल है हर बात को सुनना पर एक बार उन्हें अपने भावनाओं से डील करने की ट्रिक आ जाएगी तो आप देखेंगे की शिकायतें गायब होने लगी हैं।

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