“धरण (नाभि) खिसकना” सत्य और तथ्य।
“धरण” यह शब्द जन-जन के बीच जितना सामान्य है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इस से उतनी ही दूरी बना कर रखता है। यही कारण है कि जहाँ एक ओर हमारे घरों में दादी नानी के पास इसके कुछ इलाज उपलब्ध हैं वहीँ डॉक्टर इस तरह की किसी समस्या को ही नकार देते हैं। डॉक्टर सही हैं जब वो कहते हैं कि धरण जैसा “कोई अंग नहीं होता” पर वे गलत होते हैं जब कहते हैं कि धरण “कुछ नहीं होती।”धरण की समस्या को कभी अपच/गैस से जोड़ा जाता है तो कभी तनाव से। और ये दोनों ही बातें सही हैं।
नाभि के पीछे पाचन तंत्र तो है ही इसलिए इस जगह का सम्बन्ध भोजन से होना स्वाभाविक है, पर तनाव का यहाँ क्या काम? सही बात है ! तनाव का मामला तो हमारा दिमाग और तंत्रिका तंत्र (Nervous System) देखता है। और इस काम को करने के लिए हमारे Nervous System के दो विभाग हैं।
1. SNS विभाग – जब हमें किसी ख़तरे का आभास/ आशंका होती है तब ये विभाग हरकत में आ जाता है। ये हमें मुसीबत के समय आकुल व्याकुल कर देता है जिस से की हम खुद को उस मुसीबत से बचाने का उपाय सोच सकें। ह्रदय की धड़कन बढ़ जाना, पसीना आना, श्वास भारी हो जाना, पैरों में कम्पन आदि लक्षण (जितनी बड़ी मुसीबत उतने बड़े लक्षण).
2. PNS विभाग – इसका काम है हमारे अंदर “सब ठीक है” “कोई ख़तरा नहीं है” “relax” वाले भाव बनाए रखना। जो हमें शान्त रखने का कार्य करता है। जैसे ही मुसीबत दूर हो जाये थोड़ी ही देर में श्वास सामान्य होने लगती है, ह्रदय गति नियमित हो जाती है और हम रिलेक्स महसूस करने लगते हैं। तो ज़ाहिर है इन दोनों को मिल कर काम करना होगा तभी हमारा काम चलेगा !
ये दोनों आपस में समझबूझ बना कर काम तो करते हैं पर शरीर का एक स्थान ऐसा है जहाँ ये वाक़ई मिलते हैं, यानी इसे इनका Meeting Point समझ लिजिए और वह स्थान है नाभि, नाभि के पीछे ये दोनों बड़ी नर्व्ज़ एक दूसरे को क्रॉस करती हैं। नाभि के ठीक पीछे ये दो अति महत्वपूर्ण नर्व्ज़ कई और महत्वपूर्ण टिश्यू के साथ Arota के ठीक सामने मिलते हैं…Arota कौन? Arota हमारे शरीर की सबसे बड़ी रक्त वाहिका है । यानी धरण अपने आप में कोई एक अंग नहीं है पर धरण एक क्षेत्र (area) है !
नाभि के पीछे स्थित इस क्षेत्र को नियंत्रण कक्ष इसलिए कह सकते हैं क्योंकि यहाँ से हमारे शरीर के अति महत्वपूर्ण कार्यों -तनाव, रक्तचाप, पाचन को नियंत्रित किया जाता है। यहाँ से सारे शरीर को ऊर्जा प्रसारित की जाती है, जिससे शरीर के अन्य सभी कार्य और जीवन संभव हो पाता है।
ये क्षेत्र इतना महत्वपूर्ण है कि इसे हमारा “दूसरा दिमाग” भी कहा जाता है ! नाभि और दिमाग के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध होता है। हमारे जीवन में तनाव जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह नाभि के इसी नियंत्रण केंद्र में असंतुलन उत्पन्न करता है। मन/दिमाग पर छाने वाले किसी भी डर या आशंका का सीधा असर नाभि के नियंत्रण केंद्र पर आता है।
नाभि असंतुलन के कारण :
•समय पर और संतुलित आहार ना लेना, पूरी नींद ना लेना, शारीरिक श्रम ना करना इन सबके कारण Nervous System की नाड़ियों पर दबाव बढ़ता है। नाभि के पीछे ये नाड़ियाँ भोजन नाल और रक्त वाहिका के संपर्क में होती हैं। तंत्रिकाओं के तनाव/कमजोरी का असर इन सभी पर पड़ता है।
•खेल कूद करते समय भी नाभि केंद्र सरक सकता है।
•अचानक से दाएं बाएं झुकना, चलते चलते अचानक किसी गड्ढे में पैर जाना, तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ना उतरना भी नाभि सरकने की वजह बन सकते हैं।
•अपच (गैस), अत्यधिक तनाव भी नाभि सरकने के प्रमुख कारणों में से हैं।
•मासिक चक्र, गर्भावस्था के समय ये दिक्कत बढ़ने के चांसेस रहते हैं।
नाभि खिसकने से होने वाली दिक्कतें –
•नाभि के ऊपर सरक जाने से कब्ज और गैस की दिक्कत हो जाती है। लम्बे समय तक यह दिक्कत रहने से अल्सर हो सकता है।
•नाभि नीचे की ओर सरक जाये तो दस्त की समस्या हो जाती है।
•नाभि बायीं ओर सरक जाये तो अग्नाशय, किडनी पर असर आता है। मासिकचक्र सम्बन्धी परेशानियां होने लगती हैं।
•नाभि दांयी ओर सरक जाये तो लिवर, गॉलब्लेडर, किडनी और आँतों में दिक्कत बढ़ जाती हैं।
नाभि खिसकने के लक्षण-
•पेट दर्द, दस्त सबसे सामान्य लक्षण हैं पर सिर्फ इनसे यह पता नहीं चलता की वास्तविक कारण नाभि सरकना है या कुछ और। इसलिए कुछ और लक्षण भी देखने आवश्यक हैं।
•रोगी को पीठ के बल सीधा लेटा कर नाभि को उँगलियों से दबाएं। यदि नाभि के नीचे कुछ स्पंदन महसूस हो तो नाभि अपनी जगह पर ही है और यदि यह स्पंदन वहां न महसूस होकर आस पास हो तो इसका अर्थ है कि नाभि अपनी जगह से सरक गयी है।
•एक और तरीका यह भी है कि रोगी के दोनों हाथों की रेखाओं को मिला कर छोटी वाली उँगलियों की लम्बाई देखें यदि वे दोनों बराबर हैं तो नाभि अपनी जगह पर है अन्यथा सरक गयी हैं।
नाभि सरकने का उपचार :
•इसके लिए कई घरेलु नुस्खे तो उपलब्ध हैं ही पर सबसे कारगर है किसी योग्य योग शिक्षक के निरीक्षण में योग क्रियाओं द्वारा अपने नाभि स्थान को पुष्ट करना।
•धरण के इलाज के दौरान खान-पान को ले कर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.
•तला हुआ, तेज मसालेदार भोजन ना करें.
•मूंग दाल की खिचड़ी खायी जा सकती है.
•एक चम्मच आंवले के रस में 5-6 बूंदे अदरक के रस की मिला कर पियें।
•तुलसी के पत्तों का रस और शहद एक एक चम्मच मिला कर दिन में 2-3 बार पीजिये।
नाभि के पीछे का यह क्षेत्र हमारे शरीर के सात चक्रों में से एक “मणिपुर चक्र” है। ध्यान (Meditation) के समय इस चक्र पर ध्यान केंद्रित करना चमत्कारी रूप से आरोग्यदायक सिद्ध होता है। इन सातों चक्रों और ध्यान साधना के आरोग्यदायी प्रभावों पर चर्चा अगली बार 🙂