मनःस्थली (Mental Health)

चिंता का रिमोट कण्ट्रोल !

कितनी परेशानियाँ हैं, एक खत्म नहीं होती कि दूसरी तैयार रहती है, बातें दिमाग से निकलती ही नहीं। ये जो लोग आज हमें परेशान कर रहे हैं ना, ये सब और क्या-क्या कर सकते हैं, सब पता हैं हमें (सब सोच जो रखा हैं हमने). कभी सोचा हैं कैसे हमारा दिमाग परेशानियों की, आशंकाओं की एक लम्बी लिस्ट पहले ही बता देता हैं और रोज इस लिस्ट में नयी नयी आशंकाएं जोड़ता भी रहता हैं… बड़ा दिलचस्प हैं जानना !

हमारा दिमाग दरअसल बिजली के तारों का एक जंजाल हैं जिन्हें तंत्रिकाएं (neurons) कहते हैं। हर एक विचार जो हम सोचते हैं वो इन तारों के बीच करंट बन कर दौड़ता हैं। एक बार सोचा – एक बार करंट दौड़ा, उस बात को दो बार सोचा, चार बार सोचा, 10 बार सोचा… हर बार वही करंट दौड़ा और जिन तारों से हो कर गुजरा वहाँ रास्ता (सर्किट) बन गया। 

जैसे जब हम किसी नए रास्ते पर जाते हैं तो एक एक मोड़ पर ध्यान देते हैं किधर मुड़ना हैं, कब मुड़ना हैं, और फिर उसी रास्ते पर रोज का आना जाना हो जाये तो अब दिमाग को सजग रहने की मेहनत नहीं करनी पड़ती अब आप कुछ और भी सोच रहे हैं या किसी से बाते कर रह हैं तब भी बिना भटके अपनी मंज़िल पर पहुंच जाते हैं।

बस ठीक ऐसे ही, जब कुछ अप्रिय घटता हैं तो शुरू में वह बात आपको “रह रह कर याद आती हैं” यानि आप बहुत से और कार्य कर रहे होते हैं बीच-बीच में कभी-कभी वह बात आपको याद आती हैं (क्योंकि दिमाग में इन विचारों का सर्किट अभी बना नहीं हैं ) पर फिर हम शुरू करते हैं उस बात की जुगाली करना, यानि अपनी कल्पना शक्ति का पूरा इस्तेमाल कर के सोचना की “फलां ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने पहले भी ऐसा ही किया होगा हम ही भोले थे जो समझ नहीं पाए… अब वो आगे क्या क्या कर सकता हैं…” 

जब इतनी आशंकाए है तो चार लोगों की सलाह तो लेनी ही पड़ेगी! और हम यही करते भी हैं ! यहाँ-वहाँ कई लोगों को अपनी आशंकाएँ बताते हैं। अब, जब आप इस विषय पर नहीं भी सोच रहे होंगे तब लोग आपसे इस बारे में चर्चा अवश्य करेंगें आखिर उनकी कल्पना शक्ति ने भी नयी-नयी परेशानियाँ सुझाई हैं जो भविष्य में आपके लिए खड़ी हो सकती हैं। आपके शुभ चिन्तक होने के नाते आपको वो सब बताना उनका फ़र्ज़ हैं! 

बार बार इन्हीं आशंकाओं के विषय में सोचने से दिमाग में इसका एक स्थायी सर्किट बन जाता हैं। अब हैं – आप उस मुकाम पर जहाँ आपको चिंता करनी नहीं हैं — चिंता तो अपने आप होगी।

नतीजा? दिमाग में ये बात अब हर वक़्त रहेगी और उस छोटी सी बात से जो अनेकों “संभावित परेशानियां” सोची हैं, उन सब के भी स्थायी सर्किट्स बन चुके हैं। अब दिमाग भारी भारी सा रहता हैं, कुछ सुहाता नहीं, सर दर्द… माइग्रेन… ब्लड प्रेशर… डाईबीटीज़… डिप्रेशन… बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी… आपको कितनी दूर जाना हैं अभी सोच लीजिये! 

हमारा दिमाग एक बगीचा हैं जिसमे फूल पौधे नहीं बल्कि बिजली के तारों के बीच सम्बन्ध उगते हैं।ये सम्बन्ध वे रास्ते हैं है जिनसे हो कर ख़ुशी, स्नेह, डर, चिंता के रसायन (chemicals) गुज़रते हैं।

जानते हैं आपके इस बगीचे के रखरखाव के लिए दो माली भी हैं 🙂 

एक का नाम है “ग्लिअल”- ये माली “काम के पौधों” के रखरखाव का काम देखता हैं।और दूसरा माली है “माइक्रोग्लियल” – ये खरपतवार को हटाता हैं ताकि महत्वपूर्ण पौधों को पोषण मिल सके और वे पनप सकें।

ये दोनों माली अपने काम के तो माहिर हैं, यानि पौधे का ख्याल कैसे रखना हैं, खरपतवार को कैसे उखाड़ना हैं, ये अच्छे से जानते है पर प्रश्न आता हैं कौन सा काम का पौधा है और कौनसी खरपतवार हैं, ये कैसे पता चले?यहाँ मालिक इन्हे clue देता हैं, मालिक यानि आप।

जो पौधे (विचार) काम के नहीं हैं यानि खरपतवार हैं वहाँ एक विशेष तरह का प्रोटीन बनता हैं -C1q नाम हैं इसका, तो जहाँ ये प्रोटीन दिखता हैं उसे खरपतवार मान कर हमारा दूसरा माली उखाड़ देता हैं ताकि काम के विचारों को पनपने के लिए अच्छी जगह मिल सकें और जिन पर ये प्रोटीन नहीं होता उन्हें हमारा पहला माली बढ़ा देता हैं और उनके लिए पक्का सर्किट बना देता हैं।

कब होता हैं ये? 

जब आप सो रहे होते है तब। अगर आप पूरी नींद नहीं लेते हैं तो दिमाग की हालत झाड़ झंकाड़ भरे जंगल जैसी होती हैं जहाँ से गुजरने वाली हर बात की गति धीमी और थका देने वाली होगी। जब की पूरी नींद लिए हुआ दिमाग किसी सुन्दर सेंट्रल पार्क जैसा होता हैं जहाँ चलने के लिए साफ़ रास्ते होते हैं और अलग अलग जगहों पर ये रास्ते एक दूसरे से मिलें होते हैं। आस पास सुन्दर पेड़ पौधे फूल होते हैं, जो इस तरह व्यवस्थित होते हैं की आप इनका आनंद लेते हुए भी दूर तक देख सकने में समर्थ होते हैं। यहाँ से गुजरना भी स्फूर्तिदायक होता हैं। 

अगर हमारा मस्तिष्क खुद ही बेकार के विचारों पर निशान लगा सकता हैं और हमारा माली खुद ही उन्हें उखाड़ सकता हैं तो फिर बेकार के विचार, अनावश्यक चिंताए क्यों घेरे रहती हैं हमें? इन्हें तो खुद ही हट जाना चाहिए…दिमाग कैसे पहचानता हैं की किन विचारों पर “बेकार” होने का निशान लगाना हैं? 

दिमाग ये देखता हैं की सारे दिन में कौनसे विचारों के सर्किट्स ज्यादा बार बनें और कौनसे बहुत कम बने, जो ज्यादा बार बनें वो ही काम के हैं और जो कम बार बनें यानि वो फालतू हैं।

अब अगर ज्यादातर समय चिंता करने में, या दिल दुखाने वाले ख़यालों की जुगाली करने में बिताया हैं तो वे ही सर्किट्स ज्यादा बने हैं और इस आधार पर दिमाग को लगता हैं की आपके लिए ये ही वाले विचार महत्वपूर्ण होंगे, उनको स्थायी कर देता हैं बाकि जो थोड़ी बहुत अच्छी बाते आपने दिन में दो-चार बार सोची थी उन पर “खरपतवार” होने का निशान लगा देता हैं। रात को जब आप सोते हैं तब माइक्रोग्लियल जी नाईट ड्यूटी पर आते हैं और इन अच्छी बातों पर खरपतवार का निशान देख कर इन्हें उखाड़ देते हैं यानी अच्छे विचार- डिलीट.

इन बुरे ख़यालों ने, आशंकाओं ने आपका सारा ध्यान अपनी और खींच लिया और आपकी वह कार्य कुशलता, आपके वे अच्छे गुण जिनसे इन लोगों को ईर्ष्या हुई होगी वे स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे क्यों की आप उन्हें समय ही नहीं दे रहे हैं इसलिए नए नए विचार (ideas) भी अब नहीं आएंगे, क्योंकिं दिमाग के बगीचे में तो अब उग रही हैं आशंकाओं की खरपतवार। 

किसी शत्रु की आवश्यकता ही नहीं रह गयी हम खुद ही काफी हैं खुद को विशिष्ट से अति-साधारण बना देने के लिए। और एक बेहतरीन और अपने कार्य में कुशल व्यक्ति, हर समय आशंकित रहने वाला, परेशान और थका हुआ व्यक्ति बन जाता हैं। हमारे साथ क्या होता हैं इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता पर उन बातों पर कैसे प्रतिक्रिया देनी हैं ये अवश्य ही हम अपने नियंत्रण में ले सकते हैं।

जब परेशानियाँ हैं तो उनकी तरफ से आँखें बंद तो नहीं कर सकते, फिर क्या करें ? 

“चिंता करने का एक समय निश्चित कर लीजिये”

दिन का कोई भी समय (पर ये समय सुबह उठने के तुरंत बाद और रात को सोने से तुरंत पहले का नहीं होना चाहिए) जैसे शाम को 5:00-5:30 का समय आशंकाओं पर चिंतन करने के लिए निश्चित कर लिया। दिन में जब भी आशंकित करने वाले विचार आये तो खुद से कहिये की “अभी नहीं, इस बारे में शाम को सोचेंगे और जरूर सोचेंगे।” और दिन का अधिकांश समय सार्थक कार्यों और विचारों को दीजिये।

ऐसा करने से आपके दिमाग में ज्यादा सर्किट्स सार्थक बातों के बनेंगे और नकारात्मक विचारों के सर्किट्स की संख्या खुद ही कम हो जाएगी। और खरपतवार होने का निशान अब निरर्थक बातों पर लगेगा 🙂

शाम को या जो भी समय आपने निर्धारित किया हैं उस समय अपनी हर एक आशंका के विषय में सोचिये. आप पाएंगे की जब आपने अलग से उनके लिए समय निकाला हैं तो उन में से अधिकांश तो अपनी तीव्रता (intensity) खो चुकी हैं और जो वास्तव में चिंता योग्य बाते हैं वे ही आपके सामने आएँगी. अब अगला कदम हैं उन्हें परखना और सुलझाना। ध्यान रहें, “समस्या हैं…. हाय समस्या हैं…. मेरे ही साथ में क्यों ये समस्या हैं… ” इसे चिंतन नहीं कहते।

अपनी वास्तविक समस्या को पहचानिये. 

चिंतन यानि –

१ समस्या क्या हैं – किस प्रकार की असुविधा अनुभव हो रही हैं

२. समस्या का कारण क्या हैं?

३ परिस्थिति /व्यक्ति जिस से ये समस्या जुड़ी हैं क्या वह मेरे कहने/समझाने से परिवर्तित होगा?

४. यदि हाँ तो प्रयास कीजिये यदि नहीं तो आप स्वयं अपने कार्य को उस परिस्थिति/व्यक्ति के बिना कैसे कर सकते उन विकल्पों पर गौर कीजिये।

५. सबसे महत्वपूर्ण बात “सही निर्णय लेते समय कभी भी सबको खुश न रख पाने की ग्लानि को ना आने दे।”

दिमाग का डिलीट बटन इस्तेमाल करने की ट्रिक आपके ही हाथ में हैं, वे बातें जो आपके हित में नहीं हैं उनके बारे में ज्यादा सोचने से खुद को रोकें। अपने स्मार्ट दिमाग के स्मार्ट निर्देशक (director) बनें !

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!