मनःस्थली (Mental Health)

जानिये अपनी साँसों का हाल चाल

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जिंदगी वैसी होती हैं जैसा हमारा मन उसे महसूस करता हैं। परिस्थितियाँ हमारे नियन्त्रण में नहीं होती पर उन पर प्रतिक्रिया देने वाला मन हमारे नियंत्रण में हो सकता हैं। मन को वश में करने का मतलब ये नहीं हैं के उस से कुछ भी महसूस करने के अधिकार छीन लिए जाएँ, उसे रूखा सा कर के रख दें बल्कि मन को वश में करने का मतलब होता हैं उसे ट्रांसफॉर्म करना, रूपान्तरित करना, यानी उसकी प्रोग्रामिंग को बदल कर उसे मजबूत बनाना।

और ये जो साँसें आप ले रहे हैं न यही हैं आपके मन की इंजीनियर! जो सारी coding को बदल के रख देगी।

जीवन की बागडोर अपने हाथों में चाहिए तो ये तीन स्किल्स सीखने होंगे :

पहला – बिना दखल दिए, जो हो रहा हैं उसे सिर्फ “देखना” जैसे परीक्षा के समय टीचर करते हैं ! स्टूडेंट सही लिखे, गलत लिखे, वे नहीं टोकते वे बस देखते हैं , कोई दखल नहीं देते — जानते हैं के क्या हो रहा हैं कड़ी नज़र रखते हैं पर दखल नहीं देते।यह — दखल दिए बिना सजग रह कर ऑब्ज़र्व करने की क्वालिटी पहला स्किल हैं jo hame aana chahiye.

दूसरा स्किल – रिलैक्स होना सीखना हैं: रिलैक्स होने का मतलब समझते हैं न आप? अक्सर हम कहते हैं ये काम निपटा लें तो रिलैक्स करेंगे, यानी किसी जिम्मेदारी का पूर्ण हो जाना,  जब तक वह काम अधूरा हैं तब तक उस से जुड़े विचार हमें अलर्ट मोड पर रखते हैं और जब वह पूरा हो जाता हैं तो हमारा दिमाग उस से जुड़े विचारों को किसी नीचे के स्टोर में डाल देता हैं। यानी उन विचारों से कॉन्ससियस माइंड को मुक्त कर लेता हैं। रिलैक्स होना मतलब  चेतना को उन विचारों से फ्री कर लेना, उन्हें छोड़ देना, जाने देना।।। let go . यही “let go” का एहसास जो अभी तक किसी जिम्मेदारी के पूरा होने पर होता हैं इसी एहसास को एक स्किल की तरह सीखना हैं। ताकि अपनी इच्छा से इसका प्रयोग किया जा सके।

तीसरा स्किल हैं – नियंत्रण स्थापित करने का स्किल : यानि अपनी ऊर्जा को अपने नियंत्रण में ले लेना और फिर तय करना कब कहाँ कैसे कितनी प्रयोग करनी हैं।

ये तीनों स्किल सीखने के लिए अब चलते हैं ट्रेनिंग academy में ब्रीथिंग अकडेमी में 🙂   

हमारे शरीर में ब्रीथिंग सिस्टम अपनी पूरी कैपेसिटी के साथ काम नहीं कर रहा हैं. हमें साँस लेने की अपनी आदतों और तरीकों को बदलने की जरुरत हैं

एक बार अगर ब्रीथिंग सिस्टम अपने ऑप्टीमल लेवल पर काम करने लगे तो हमारी साँसे अपने आप में एक therapeutic tool में तब्दील हो जाती हैं यानी आपके हर मर्ज की दवा !

साँसों और शरीर के ऑर्गन्स के बीच तालमेल हो जाये तो ये दोनों मिल कर मन के हर रोग को ठीक कर देते हैं

और साँसों और मन के बीच तालमेल हो जाये तो ये दोनों मिल कर शरीर के हर रोग को ठीक कर देते हैं।

यानि साँसे, शरीर के ऑर्गन्स और मन, इन तीनों के बीच का कोऑर्डिनेशन हो तो डायबिटीज, ब्लड प्रेशर के शारीरिक रोग हों या attitude, इमोशंस, बिहेवियर सब पर काम किया जा सकता हैं।

तो शुरू करें काम?

आज का पहला लेसन ये हैं: अभी आप कैसे साँस ले रहे हैं, ये चेक कीजिये

एक हाथ अपने सीने पर रखिये और एक हाथ अपने पेट पर रखिये और अपनी साँसों को महसूस कीजिये। जब आप सांस अंदर लेते हैं तो आपको किस हाथ के नीचे स्पंदन महसूस होता हैं? इस से पता चलेगा के आप चेस्ट ब्रीथिंग करते हैं या बेली ब्रीथिंग.

चेक कीजिये के क्या आपकी साँसे जल्दी जल्दी आती हैं या लम्बी और गहरी महसूस हो रहीं हैं ?

चेक कीजिये के क्या आपकी साँसे एक लय में आती हैं या कभी छोटी कभी बड़ी अनियमित सी रहतीं हैं ?

अगर आप एक स्वस्थ व्यक्ति हैं तो आपका अपनी साँसों पर इतना नियंत्रण होना चाहिये के आप चाहें तो साँसों को इतना धीरे धीरे लें के एक मिनट में चार पांच साँसे ही हो और आप चाहें तो इतनी फटाफट लें के एक मिनट में 120 से भी ज्यादा बार ले सकें।

कर के देखिये, अगर आप ये दोनों तरीके से साँसे ले सकते हैं यानि आपके लंग्स अभी स्वस्थ हैं और हमें सिर्फ इनको सही तरीके से सांस लेने की ट्रेनिंग देनी हैं.

सांस लेने के यूँ तो कई तरीके हैं पर दो बहुत ही जरुरी तरीके हैं जिन पर मास्टरी हाँसिल करना जरूरी हैं। इन दोनों तरीकों पर हम अगले आर्टिकल में बात करेंगे।

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DeCode Breathing Episode 1
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