अध्यात्म (Spiritualism)

मांगलिक होने का अर्थ क्या हैं?

शादी के लिए योग्य वर/वधु की तलाश के शुरू होते ही अक्सर एक और वाक्य सुनाई देने लगता हैं – लड़की मांगलिक हैं लड़का मांगलिक ही ढूँढना!  इस एक शब्द “मांगलिक” को एक हौव्वे की तरह समाज के सामने रख दिया गया हैं. हो सकता हैं आप अपने लिए या अपने किसी परिजन की शादी के समय इस “समस्या” से गुजरे हों जबकि मांगलिक लड़के/लड़की की तलाश ने आपकी रातों की नींद हराम की हो और यह भी हो सकता हैं के आपके पास ऐसे १००१ उदहारण हों जो यह साबित करते हों की मांगलिक गुण का मेल करवा लेने के बावजूद भी शादी निभ नहीं पायी या वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा और मैं आप से सहमत भी हूँ. पर इस से पहले के आप यह निष्कर्ष निकालें के यह सिर्फ एक खोखला डर हैं जिसका व्यावहारिक जीवन से कोई लेना देना नहीं हैं और आप इस अध्याय को यहीं बंद करने लगें…मैं आपको रोक कर कुछ बताना चाहूंगी. मांगलिक शब्द को ले कर जो घना धुआँ हैं इसके नीचे एक वास्तविक चिंगारी हैं. उस चिंगारी की वास्तविक प्रकृति को जरा समझ लीजिये. 

ज्योतिष या ग्रहों और राशियों के बारे में भले ही आप बहुत ज्यादा न जानते हों पर अख़बारों में या मेगज़ीन्स में “राशिफल” देखने का शौख कभी न कभी जरूर रहा होगा और अगर बस इतना सा शौख भी रहा था तो जो मैं समझाना चाह रही हूँ, आप जरूर समझ जायेंगे. अपने जन्मदिन के आधार पर आप स्वयं को अक्सर किसी राशि (zodiac) से जोड़ते होंगे और अपने व्यक्तित्व को कुछ खास तरह के गुणों से जोड़ कर देखते होंगे. मसलन कन्या राशि यानि बहुत व्यवस्थित स्वभाव, मेष राशि यानि आक्रामक किस्म का बहुत अधिक ऊर्जावान व्यक्तित्व, कर्क राशि यानि भावुक और परवाह करने वाला व्यक्ति वगैरह वगैरह. यानि आप यह जानते हैं राशियाँ कुछ गुणों को दर्शाती हैं. ऐसे ही ग्रह भी कुछ विशेष गुणों को दर्शाते हैं. अगर आपने कभी किसी कुंडली की तस्वीर भी देखी हो तो उसमे १२ भाव होते हैं. हर भाव जीवन के किसी न किसी क्षेत्र को दर्शाता हैं.  

आमतौर पर कुंडली मिलान के समय साधारण रूप से जन्म कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें, या बारहवें भाव में से किसी में भी यदि मंगल हो तो व्यक्ति को मांगलिक कह दिया जाता हैं. सिर्फ इन्हीं भावों में मंगल की उपस्थिति को महत्व इसलिए दिया जाता हैं क्योंकी ये सभी भाव किसी न किसी रूप से व्यक्ति और उसके जीवन साथी के साथ संबंधों से जुड़े हैं और मंगल चूँकि एक कठोर ऊर्जा वाला ग्रह हैं इसलिए इन भावों में एक कठोर ग्रह का होना आपसी संबंधों में एक अलग तरह के सामंजस्य की मांग करता हैं. इसलिए यदि पति-पत्नी दोनों एक ही तरह की ऊर्जा रखतें हों तो उनके आपसी सामंजस्य में सहजता रहने की संभावना अधिक रहती हैं.

ग्रह तो और भी हैं तो सिर्फ मंगल को लेकर ही इतना बवाल क्यों?

क्योंकि मंगल सेक्सुअल ऊर्जा का कारक ग्रह हैं और वैवाहिक जीवन में इसकी भूमिका बहुत अधिक हैं. 

मंगल ग्रह का मेल हो जाये तो वैवाहिक जीवन सुखद होने की गारंटी मिल जाएगी? 

जी नहीं, नहीं मिलेगी. वैवाहिक जीवन अपने आप में और भी अनेकों पहलू समेटे हुए हैं और सारा दायित्व अकेला मंगल नहीं उठाता.

जैसे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए हर साल एक प्रवेश परीक्षा होती हैं जो सिर्फ यह तय करती हैं के मेडिकल में एडमिशन पाने वाले विद्यार्थियों में कुछ निश्चित और आधारभूत क़ाबलियत (aptitude) होनी चाहिए. पर मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास करने वाले सभी बच्चे बिलकुल एक जैसे तो नहीं होते? न ही वे सभी आगे चल कर बिलकुल एक जैसे काबिल डॉक्टर साबित होते हैं. वह परीक्षा सिर्फ यह तय करती है के वे सभी लोग मेडिकल के एक जैसे पाठ्यक्रम की पढाई कर सकने के योग्य हैं पर आगे उनमें से कौन कितना सफल डॉक्टर बनेगा यह तय करने के कई मापदंड होते है. ऐसे ही दोनों का मांगलिक होना सिर्फ शुरूआती स्तर की एक आधारभूत समानता को दर्शाता है. पर जीवन की अनेकों परीक्षाएं अभी आनी बाकी होती है.

जो लोग यह तर्क रखते हैं के दोनों के मांगलिक होने के उपरांत भी वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा या पारिवारिक जीवन में अनेक समस्याएं आयी. उनकी बात भी सही हैं, क्योकि मंगल की इन भावों में उपस्थिति सिर्फ उन दोनों में “ऊर्जा की एक विशेष अवस्था का मेल” होता हैं. इससे उनका भाग्य नहीं बदलता. वैवाहिक जीवन सुचारु रहेगा या नहीं ये देखने के लिए अन्य कई योग देखने आवश्यक होते हैंं. 

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