मनःस्थली (Mental Health)

जीना इसी का नाम है…

जिंदगी जैसे मशीन सी चल रही है बे-रौनक… बे-मतलब सी. अपने आस पास सब नकली सा लगता है… बुझा बुझा सा! जाने क्यों सब कुछ होते हुए मन खुश नहीं रहता। क्या आपको भी लगता है कभी ऐसा… कि कुछ तो है जो मन को चाहिए, पर मिल नहीं रहा है!

यह कुछ ऐसा है कि जैसे बहुत सुंदर सुसज्जित कमरा हो और उसमें कोई खिड़की और रौशनदान ना हो और बाहर की ताज़ी हवा का आवागमन न हो रहा हो तो कुछ समय बाद उसमें एक घुटन सी होने लगती है. कुछ वैसी ही स्थिति हमारे मन की भी हो जाती है। अगर सब कुछ होते हुए भी मन ख़ुश नहीं है तो इसका मतलब यह है कि मन में एक घुटन सी भर रही है, मन ‘ सफोकेट’ हो रहा है। आप सोचेंगे अब मन के लिए खिड़कियाँ और रौशनदान कहाँ से लाएँ? पर यकीन मानिये मन के भी अपने दरवाज़े होते हैं जिन्हें हम खुला रखना भूलने लगे हैं।

प्रकृति का एक सार्वभौमिक (universal) नियम है जो कहता है, “जो देता है, वही पनपता है !”

जानते हैं कि पेड़-पोधे हमें ऑक्सीजन देते हैं पर क्या वे ऑक्सीजन दे कर हम पर कोई एहसान करते हैं…? नहीं ! ऑक्सीजन देते हैं क्योकिं उनका अपना जीवन तभी सम्भव है जब वे ऑक्सीजन देंगे! उन्हें जिन्दा रहने के लिए कार्बन-डाई-आक्साइड चाहिए जो हम अपनी श्वासों से छोड़ते हैं। तो क्या हम इसलिए छोड़ते हैं कि पौधों पर उपकार कर सकें? नहीं। हम इसलिए छोड़ते हैं कि ख़ुद हमारा जीवन भी इसे ‘दे कर’ ही सम्भव है। हमारे और पौधों के बीच के इस लेन-देन में कोई किसी पर एहसान नहीं कर रहा होता, हम दोनों के लिए यह सिर्फ जीने का ढंग ही नहीं बल्कि जीने की शर्त भी है!

“ख़ुशी” भी मन के लिए इसी जीवनदायी ऑक्सीजन जैसी होती है। मिलेगी, पर देनी पड़ेगी पहले! और मन की यह ख़ुशी तब अवरुद्ध हो जाती है जब हम इसे “देना” छोड़ देते हैं।

खुशियाँ दे सकने के लिए आपको पैसे खर्च करने की जरुरत नहीं है, बस आपको एक खुशनुमा इंसान होने की जरुरत है। एक ऐसा इंसान जिसकी उपस्थिति भी सामने वाले मन में भरोसे का अमृत भर सके। और इसके लिए आपको ये चंद बहुत छोटी छोटी आदतें अपनानी हैं –

1. सामने वाले की बात को सुनिए — यह बहुत साधारण बात लगती है पर सच तो यह है कि हम में से अधिकांश लोगों में सामने वाले की बात को पूरा सुनने का धैर्य होता ही नहीं है। बात का कुछ अंश सुनने के बाद हमारे दिमाग पर हमारा अपना दृष्टिकोण हावी हो जाता है और हम उसी के आधार पर उस बात का अगला हिस्सा गढ़ लेते हैं और बिना सामने वाले को पूरा सुने अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर देते हैं। अक्सर हमारी ये जल्दबाज़ी में दी गयी प्रतिक्रियाएँ सामने वाले की सोच को खारिज़ करने वाली होती हैं। हम तुरंत उसे यह बताने लगते हैं कि “ऐसा नहीं वैसा करना चाहिए था” या “उसे ऐसा नहीं वैसा सोचना चाहिए था” ये प्रतिक्रियाएँ भले ही हम “शुभचिन्तक” होने के नाते दे रहे हों पर सामने वाले तक ये “तुम गलत हो” किस्म की विषाक्त गैस के रूप में प्रेषित होती हैं। इसलिए धैर्य के साथ पूरी बात सुनने की आदत डालिये। अपने “अनुभवों”, “बुद्धि”, “ज्ञान” इन सभी को कहिये की कुछ देर शांत रहें। जो आपसे अपने मन की बात कह रहा हैं उसे आप वह दीजिये जिसकी उस वक़्त उसे जरुरत हैं। और वह चीज हैं आपका — “ध्यान” यानि attention. उसे उस वक़्त कोई ऐसा चाहिए जो “उसे कैसा लग रहा हैं” ये सुने। न के यह बताने की जल्दबाज़ी करे के “उसे सब गलत लग रहा हैं” आप उनसे सहमत हों या न हो पर उनकी भावनाओं को ख़ारिज कर देने की जल्दबाजी न करें।

2. किसी का हाथ थामिए — हम सब को कभी न कभी किसी के सहारे की जरुरत महसूस होती ही हैं और लगता है काश कोई थोड़ी सी मदद कर दे. पर कितने लोग होते हैं जो बिना माँगे किसी की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं। हम में से अधिकांश लोग किसी की मदद माँगती नज़रों को देख कर अनदेखा और सुन कर अनसुना कर देना चुन लेते हैं। दिन में पंद्रह मिनट ऐसे निकालिये जब आप किसी की कोई मदद कर सकें। यह कोई भी हो सकता है। ख़ास तौर पर कोई ऐसा जिसे जरुरत तो हो पर उसे उम्मीद न हों कि कोई उसकी भी मदद कर सकता है।

3. किसी को हँसाइये — कहते हैं किसी पर हँसने से कहीं ज्यादा अच्छा है किसी के साथ हँसना। मज़ाक कीजिये पर मज़ाक उड़ाइये मत ! किसी के साथ हल्की-फुल्की चुहलबाज़ी भी करें तो इस तरह करें कि वह भी आपके साथ हँस दें। जब आप किसी को हँसाते हैं तो वह व्यक्ति सकारात्मकता की एक सीढ़ी चढ़ जाता है और उसके उस क्षण के साथी आप होते हैं — इसलिए उनके साथ वह सीढ़ी आप भी चढ़ते हैं ! बातों को सहज बनाये रखने की, उनमें कुछ मजेदार ढूंढ सकने की कला विकसित कीजिये। आप पाएंगे कि औरों को हँसतें देखना बेहद खुशनुमा एहसास है।

4. सकारात्मक सलाह दीजिये — सामने वाले की समस्या से जुड़े हुए आपके पास भी कई कड़वे उदाहरण हो सकते हैं परन्तु परेशान व्यक्ति को अपने या चार और लोगों के बुरे अनुभवों की कहानियाँ मत सुनाइए। अगर आपके पास सिर्फ एक सकारात्मक उदाहरण है तो उन्हें वो एक उदाहरण ही बताइये जिनमें कोई उस समस्या को सुलझा पाया था।

5. उन्हें उनकी खूबियां बताइये / याद दिलाइये — हम सबको कभी न कभी इस रिमाइंडर की जरुरत होती ही है। हमें “कोई ऐसा” चाहिए होता है जो जरुरत पड़ने पर हमें हमारी ही वे खूबियाँ याद दिला सके जिन्हें हम परेशानियों के भँवर में फँसे होने के कारण भूलने लगे हैं। किसी के लिए वह “कोई” बनिये ! अपने अपनों की खूबियों को पहचानिये और याद रखिये। जरुरत पड़ने पर आपको बस वही आईना उनके आगे रखना है – पर पूरी सूझबूझ से।

प्रेम, सहयोग, दो मीठे बोल, किसी की थोड़ी सी सराहना, किसी के छोटे से प्रयास की तारीफ़… ये सब बस यूँ ही किसी के पास से गुज़रते हुए दे दिया कीजिए… ख़ुशियाँ देंगे तो बदले में प्राणवायु सी ख़ुशियाँ मुड़ कर आएँगी भी! हमें बस मन के दरवाज़े खुले रखने हैं कि ख़ुशियों के आते जाते रहने की गुंजाईश बनी रहें.

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