ADHD परवरिश (Parenting)

एडीएचडी (ADHD) : बच्चों को चाहिए एक ख़ास परवरिश

एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चे या किशोरों के साथ जिंदगी आसान नहीं होती। एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चों का व्यवहार घरवालों के लिए भी अक्सर नागवार होने लगता है, पर यहाँ यह याद रखना बहुत जरुरी है कि वह बच्चा जो आपकी हर बात को नज़रअंदाज़ कर रहा है, आपको खीज से भर रहा है और जो कई बार आपको लोगों के सामने असहज स्थिति में ला देता है, वह बच्चा यह सब “जानबूझ कर” नहीं कर रहा है।  एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चे भी चाहते हैं कि वे आराम से बैठें,  वे अपना कमरा साफ़ सुथरा रखें, वे वह सब मानना भी चाहते हैं जो आप उनसे कह रहे हैं, पर वे ये नहीं जानते कि वे ये सब करें कैसे? अगर आप बस इतना याद रख पाएँ कि यह सारी अजीब स्थितियाँ जितना आपको परेशान कर रहीं हैं उतना ही परेशान वे आपके बच्चे को भी कर रहीं हैं तो आपका उनके प्रति रवैया खुद ही नरम हो जायेगा।

अगर आप उन्हें अपनी ऊर्जा को ठीक तरह से इस्तेमाल करने में मदद कर पाएं तो यह आपके परिवार के माहौल के लिए भी बहुत अच्छा साबित होगा। जितनी जल्दी आप उनकी समस्या का वास्तविक स्वरूप समझ लेंगे, और जान जायेंगे कि  “आपको करना क्या है ” सफलता उतनी जल्दी उनके हाथ होगी। सबसे पहले यह जानिए कि  एडीएचडी (ADHD) की स्थिति में दिमाग के “executive” वाले कार्य प्रभावित होते हैं यानी  कि  “आगे का सोचना, योजना बनाना, व्यवस्था बैठानी, अपने आवेगों को नियंत्रित करना और शुरू किये गए काम को पूरा करना।” तो इसका मतलब यह हुआ कि प्रबंधन वाले इन कामों में आपको बच्चे के लिए निर्देशक की भूमिका निभानी है और फिर धीरे-धीरे निर्देशक से सहायक की भूमिका में आना है और आपके सतत प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) से जैसे-जैसे बच्चे प्रबंधन को अपने हाथ में लेते जायेंगे वैसे-वैसे आपको सहायक की भूमिका भी छोड़ते चले जाना है। यह सब आपको कैसे करना है आज इसी की योजना पर बात करते हैं।

1. एक नियमित दिनचर्या बनाइये और उस पर कायम रहिये

किसी भी काम को करने के तरीके, समय और जगह अगर निश्चित रखी जाये यानी  कि  एक निश्चित पैटर्न पर चला जाये तो एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चे उन कामों को न सिर्फ जल्दी सीख सकते हैं बल्कि बेहतर तरीके से कर भी पाते हैं। इसलिए अपने घर में दिनचर्या का एक निश्चित ढांचा बनाइये जिसमें बच्चे को अंदाज़ा रहे कि कब, क्या, कैसे करना है।

एक निश्चित पैटर्न कैसे बनाया जाये इसके लिए कुछ टिप्स:

(A) एक सी दिनचर्या अपनाइये

बच्चों के हर काम का समय, तरीका और स्थान निश्चित रखें जैसे भोजन, होमवर्क, खेलना और सोना आदि। बच्चों को आदत डालिये कि वे रात को बिस्तर पर जाने से पहले अगली सुबह पहनने वाले यूनिफार्म, स्कूल का आईडी कार्ड, जूते मोज़े सब तैयार करें।

(B) घर में हर जगह घड़ियाँ जरूर लगा कर रखिये

किस काम में कितना समय लगना चाहिए इसकी एकरूपरेखा बच्चे के दिमाग में भी रहनी चाहिए। मसलन तैयार होने में कितना टाइम लगेगा, होमवर्क कितनी देर में कर लेना है, एक काम को करने के बाद उस से सम्बंधित चीजों को समेटने में कितना वक़्त लगेगा इन सब का आईडिया बच्चे को रहना चाहिए। 

(C) बच्चे का रूटीन सरल रखें

एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चों को दिन में अधिक समय तक खाली रहना ठीक नहीं है पर ऐसा भी न हो कि स्कूल के बाद आप उन्हें इतनी अधिक एक्टिविटीज में डाल दें कि वह सब उनके लिए अतिरिक्त तनाव का कारण बन जाये। हो सकता हैं कि कोई दूसरा एडीएचडी (ADHD) वाला बच्चा एक से ज्यादा एक्टिविटी में जाता हो पर इस से यह सिद्ध नहीं होता कि आपके बच्चे को भी “उतना तो” करना ही चाहिए। अपने बच्चे की सीमाओं को परखिये और उसके अनुसार निर्णय लीजिये। 

(D) एक शांत जगह की व्यवस्था कीजिये

यह सुनिश्चित कीजिये कि आपके बच्चे के पास उसका अपना एक शांत और व्यक्तिगत स्थान हो। यह आपके घर का बरामदा हो सकता है या उसका अपना कमरा भी।

(E) अपने घर को सुव्यवस्थित रखिये

आप घर को व्यवस्थित रखेंगे तो उसको यह समझ आएगा कि हर चीज की एक निश्चित जगह होती है।

2. बच्चों की एक्टिविटीज और अच्छी नींद दोनों को सुनिश्चित करें

 अपने बच्चे के लिए एक ऐसा स्पोर्ट्स चुनिए जिसमें उसे आनंद भी आये और जो उसकी सामर्थ्य के अनुसार हो। ध्यान रखिये कि ऐसा खेल चुनियेगा जिसमें बच्चों को लगातार कुछ करते रहने का अवसर रहे जैसे बास्केट बॉल या हॉकी में होता है। सॉफ्ट बॉल जैसा खेल जिसमें कुछ करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़े, तो वहाँ दिक्कत हो सकती है।

दिमाग को शांत और रिलैक्स करने के लिए अच्छी नींद लेना सभी के लिए जरुरी होता है और एडीएचडी (ADHD) की स्थिति में तो यह और भी अधिक नाजुक मामला हो जाता है। एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चों को कम से कम उतनी नींद तो चाहिए है जितनी की सामान्य बच्चों को चाहिए होती है पर उनको उतनी नींद मिलती नहीं है क्योंकि पल पल विचलित रहने वाला इनका दिमाग नींद लेने के लिए आसानी से तैयार ही नहीं होता है। इसलिए जरुरी है कि इनका सोने का समय फिक्स किया जाये और इन्हें बिस्तर पर थोड़ा जल्दी भेजा जाए ताकि इन्हें नींद के वास्तविक घंटे पूरे मिल सकें। हालाँकि सिर्फ बिस्तर पर जल्दी भेज देने से बात बनेगी नहीं, आपको कुछ और भी करना होगा।

बच्चे की अच्छी नींद सुनिश्चित करने के लिए इन तरीकों को अपनाइये

  • स्क्रीन टाइम (टीवी, मोबाइल, वीडियो गेम्स) को कम कीजिये – विशेषतः सोने के समय से एक घंटे पहले वे किसी तरह की स्क्रीन के संपर्क में न रहें।
  • सोने से एक घंटे पहले उन्हें शान्त और सृजनात्मक एक्टिविटीज की आदत डालिये जैसे, ड्राइंग-कलरिंग या किताब पढ़ना।
  • बच्चे के भोजन में कैफीन की मात्रा कम कीजिये- भले ही आपके बच्चे चाय या कॉफ़ी न लेते हों पर कैफीन और भी कई खाद्य पदार्थों में होती हैं जैसे – चॉकलेट, आइसक्रीम, बाजार में मिलने वाला योगर्ट, ब्रेकफास्ट सीरियल्स (cereals), पुडिंग, हॉट कोको, यहाँ तक कि डी-कैफीन कॉफ़ी में भी कैफीन होती है। 
  • सोने से पहले कम से कम दस मिनट उन्हें अपने पास बैठाइये, गले लगाइये, आपका स्नेहपूर्ण स्पर्श से उनके मष्तिष्क से शान्त और रिलैक्स करने वाले हार्मोन्स का स्त्रवण होता है जो आवेगों को शांत कर के अच्छी नींद दिलाने में सहायक होता है।
  • बच्चों के कमरे में किसी भीनी खुशबू (लेवेंडर या ऐसा ही कुछ) वाले स्प्रे या अरोमा मशीन का प्रयोग करें। यह भीनी महक चित्त को शांत करने में सहायक होती हैं।
  • बच्चो को सुलाते समय उनके कमरे में एक शांतिपूर्ण मधुर संगीत बहुत धीमी आवाज में बजता रहे तो यह उनको सुला सकने में सहायक सिद्ध होता है। इस तरह के संगीत को व्हाइटनॉइस (white noise) कहा जाता है। यानी मन को सुहाने वाली कुछ ऐसी आवाजें  जो एक सी फ्रीक्वेंसी पर बजती रहें। ऐसी कई ऐप्स भी उपलब्ध हैं जिनमे बारिश की आवाज, या अग्नि की लपटों की आवाज लगातार चलती रहती हैं। इलेक्ट्रिक पंखें से आने वाली आवाज भी यह काम कर सकती हैं। देखिये कि आपके बच्चे को कैसी आवाज सुकून देती हैं और वैसी ही व्यवस्था कीजिये।

3. व्यवहार के नियम-कायदे स्पष्ट रखें

एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चों के लिए हर बात जितनी स्पष्ट और “हर बार एक जैसी रहे” उतना जल्दी वे सीख पाते हैं। इसलिए आप उनसे किस स्थिति में कैसा व्यवहार चाहते है इसके लिए अपनी अपेक्षाएँ स्पष्ट बताया कीजिये और साथ ही उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि  “उचित व्यवहार” करने पर उन्हें कुछ इनाम मिलेगा और “अनुचित व्यवहार करने” का भी एक परिणाम होगा। यह सिर्फ तब तक करना है जब तक वह पर्टिकुलर सही व्यवहार उनकी आदत में शामिल न हो जाये। जैसे कि  “किसी की बात काट कर बीच में बोलना” यह छुड़वाना है और “सामने वाले की बात पूरी होने पर अपनी बात कहना” या “अत्यावश्यक होने पर इजाजत माँग कर (एक्सक्यूज मी), इजाजत मिलने पर बीच में अपनी बात कहना” सिखाना है। तो यह अपेक्षा समझा देने के बाद हर बार सही व्यवहार करने पर इनाम (पैसे, चीजें नहीं) और सही व्यवहार न करने पर कुछ परिणाम (सजा – डाँट या शारीरिक दंड नहीं) होगा।

इनाम इस प्रकार से हो सकते हैं –

  • तारीफ, और कुछ एक्टिविटीज में एक्स्ट्रा सुविधा देना (जैसे पार्क में एक्स्ट्रा पंद्रह मिनट खेल सकना, कलरिंग में आप भी उसके साथ बैठ कर कलरिंग करेंगे – बच्चे आपका साथ एन्जॉय करते हैं)
  • जो भी इनाम आप तय करें उसे थोड़े थोड़े समय में बदलते रहें क्योंकि कुछ समय में उस इनाम की कीमत नहीं रहती और बच्चे बोर भी हो जाते हैं।
  • एक चार्ट बना कर भी लगा सकते हैं जिसमें हर सही व्यवहार पर उसके नाम के आगे स्टार या स्माइली वाला स्टीकर लगाएं। इस से बच्चे को अपने अब तक के सही व्यवहार का रिकॉर्ड आँखों के आगे दिखता रहेगा और यह अपने आप में प्रेरणा का स्त्रोत बनेगा। आप स्टार/स्माइली का एक पिरामिड सा बनाना भी शुरू कर सकते हैं इस से बच्चे को उत्साह रहेगा कि वह अधिक से अधिक स्टार हासिल करें और पिरामिड के टॉप तक पहुँच सकें.

रिवॉर्ड उसी वक़्त/उसी दिन दीजिये… टालिये मत वरना इनाम अपना चार्म खो देगा और बच्चे का उत्साह भी मंद पड़ जायेगा।

अनुचित व्यवहार के परिणाम के तौर पर आप यह कर सकते हैं –

  • सबसे पहली बात यह कि जो भी परिणाम आप तय करें वह बच्चे को पहले से पता होना चाहिए कि अनुचित व्यवहार का फलां परिणाम होगा।
  • उसकी पसंदीदा एक्टिविटीज की समयावधि में कुछ कटौती की जा सकती है।
  • जिस परिस्थिति में उस ने अनुचित व्यवहार किया हो उसे वहाँ से हटने के लिए कहा जा सकता है। वह अगले कुछ मिनट अपने कमरे में रहे।
  • जब भी वह अनुचित व्यवहार करे तो उस से पूछिए कि इसकी जगह उसे “कैसा व्यवहार करना चाहिए था” वह व्यवहार कर के दिखाने को कहें। यानी उसी बात को सही तरह से कहना।
  • एक बहुत जरुरी बात – बच्चे को इनमें से कुछ भी कहते समय आपको आवेश में नहीं आना है। कभी भी आप उसे मूर्ख, नालायक, आफत मचाने वाला या ऐसे ही किसी लेबल से न नवाज़े। याद रखिये आपको उसे यह बताना है कि “अनुचित व्यवहार का एक परिणाम होता है” और उस परिणाम का सामना उसे करना होगा। वैसा करते समय भी आप उसे प्यार करते हैं. ”वह व्यवहार गलत था” पर वह बुरा बच्चा नहीं है। बच्चे अच्छे-बुरे नहीं होते, व्यवहार अच्छा-बुरा होता है। लेबल व्यवहार को दीजिये बच्चे को नहीं !
  • जिस तरह इनाम देने में चूक या देरी नहीं करनी थी वैसे ही अनुचित व्यवहार को भी कभी भी नज़रअंदाज़ न करें। हर बार सही व्यवहार पर इनाम होगा और हर बार गलत व्यवहार पर तयशुदा परिणाम का सामना करना ही होगा।

4. बच्चे को दोस्त बनाना सिखाइये

एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चे अक्सर सामाजिक जीवन में फिट होने में समय लेते हैं। अक्सर वे खुद इतना ज्यादा बोलते हैं और लोगों की बातचीत के बीच में टोक कर बोलने की आदत के चलते लोग उनसे खीज जाते हैं। सामने वाले के खीजने पर ये और भी गुस्से में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और मामला वहीँ बिगड़ जाता है। जिनसे दोस्ती होनी थी वे ही इनको चिढ़ाने वालों की टोली में तब्दील हो जाते हैं।

ये बच्चे भी दोस्ती करना चाहते हैं. ये भी चाहते हैं कि इनके साथ खेलने वाला…मस्ती करने वाला कोई हो पर हर बार बात बनने से पहले ही बिगड़ जाती है। जब भी आपका बच्चा मायूस हो कर यह सब आपको बताये तो न तो उसे बुरा भला कहिये न ही उसकी क्लास के उन बच्चों को।  बल्कि उसे सिखाइये कि दोस्त कैसे बनाते हैं।  इसके लिए आपको उसे उसकी कमियां पूरी ईमानदारी से बतानी है पर इस तरह नहीं कि उसका आत्मविश्वास डगमगा जाए. दोस्ती करने के लिए इन बच्चों को एक बेहतर श्रोता बनना, सामने वाले के चेहरे के भाव पढ़ना और लोगों के हाव भाव (बॉडी लैंग्वेज), और समूह में सौहाद्रपूर्ण तरीके से अपनी बात कहना सीखना होगा।

यह सब सिखाने में आप इस तरह सहायता कर सकते हैं –

  • सबसे पहले तो अपने बच्चे को नरमी से पर पूरी सच्चाई से बताइये कि उसको अपने बात करने और दूसरों की बात सुनने के तरीके को बदलने की जरुरत है।
  • बच्चे के साथ घर में ही छोटे-छोटे रोल प्ले (ड्रामा) कीजिये जिसमें इसे कुछ अन्य बच्चों से जा कर बात करनी हो। ऐसा ड्रामा घर में ही माता-पिता, भाई-बहन मिल कर खेल सकते हैं। इसे एक मजेदार एक्टिविटी की तरह ही कीजिये। यह प्रैक्टिस उसे वास्तविक जीवन में जब वैसा अवसर आएगा तब बहुत काम आएगी।
  • आप उसके हमउम्र बच्चों को खेलने के लिए अपने घर आमंत्रित कर सकते हैं। एक बार में एक या दो बच्चों को ही बुलाएं। बच्चों के खेल और बातचीत पर पूरी नज़र रखें और किसी भी तरह की धक्का मुक्की, मार-पीट, चिल्लाना जैसी हरकतों को बिलकुल भी नज़रअंदाज़ न करें।
  • बच्चे के खेलने के लिए उचित स्थान की व्यवस्था करें और जब भी वह अच्छे से खेले (सही व्यवहार के साथ) तो उसे इनाम जरूर दें।

परवरिश अपने आप में बहुत थका देने वाली चीज है ख़ास तौर पर तब, जब आप पर विशेष जरूरतों को पूरा करने का दायित्व हो। ऐसे में आप पल पल अपने बच्चे के लिए रोल मॉडल की भूमिका में हो। ऐसे में सबसे जरुरी हो जाता है कि आप सबसे ज्यादा ख्याल खुद अपना रखें। अगर आपने अपने सही खान-पान, एक्सरसाइज और मानसिक और भावनात्मक आराम पर ध्यान नहीं दिया तो आपका धैर्य समाप्त होने लगेगा और फिर आपको ये जो पूरा सपोर्ट सिस्टम बनाना और चलाना हैं वह ढहने लगेगा। इसलिए अपना बहुत-बहुत ख़याल रखिये क्योंकि आपके बच्चे को आपकी बहुत जरुरत है। वह अपनी सफलता से बस कुछ ही कदम की दूरी पर है और ऐसे में आप अपने प्रति लापरवाही रख कर उसका सफर लम्बा नहीं करना चाहेंगी हैं न?

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