ADHD परवरिश (Parenting)

एडीएचडी (ADHD) : वे बातें जो मनोवैज्ञानिक चाहतें हैं के आप जानें।

पिछले आर्टिकल ADHD क्या होता हैं? में हमने एडीएचडी (ADHD) के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की. आज बात करते हैं कि एडीएचडी (ADHD) रोजमर्रा की जिंदगी में कैसा नज़र आता है. पेरेंट्स, टीचर्स इस तरह के व्यवहार को कैसे देखते हैं और इस व्यवहार के पीछे का वह सच, जो मनोविज्ञान आपको बताना चाहता है।एडीएचडी (ADHD) यह नाम अपने आप में तीन प्रमुख समस्याओं को दर्शाता है –

  • एकाग्रता का अभाव (Inattention)
  • अधीरता (Impulsivity)
  • अति-सक्रियता (Hyperactivity)

आइये अब देखते हैं कि आम जिंदगी में ये मानसिक समस्याएँ कैसी नज़र आती हैं.

एकाग्रता की कमी (Inattention)

पेरेंट्स ऐसा कहते हैं

  • जब मैं इसे कुछ कहती हूँ तो ऐसा लगता हैं एक कान से सुन कर दूसरे से निकल जाता है. मैं कैसे मान लूँ कि इसे कुछ समझ नहीं आता है… मैंने इसे घंटों वीडियो गेम खेलते देखा है तब कैसे ध्यान एकाग्र रहता है…??
  • इसको सारे क्रिकेटरों के नाम याद रहते हैं पर अभी दो मिनट पहले क्या पढ़ाया वो नहीं याद रहता! यह नाटक नहीं तो क्या है?

टीचर्स की शिकायतें कुछ ऐसी होंगी

  • ऐसा लगता है जैसे यह किसी और ही दुनियाँ में रहता है.
  • इसे जब भी किताब से कुछ पढ़ने को कहा जाए इसे कभी पता नहीं होता हम कौन से पेज की कौन सी लाइन पर हैं.
  • अगर इसे बताया भी जाये की कहाँ से पढ़ना हैं तो भी इसे कुछ समझ ही नहीं आता

मनोवैज्ञानिक आपको बताना चाहेंगे

‘एकाग्रता की कमी’ एडीएचडी (ADHD) का सबसे प्रमुख लक्षण है। ऐसा नहीं है कि एडीएचडी (ADHD) वाले बच्चे कुछ समझ नहीं सकते – वे सबकुछ समझ सकते हैं! दिक्कत यह है कि इनका दिमाग एक चीज पर टिकता नहीं है, वह तुरंत किसी दूसरी चीज पर स्विच कर जाता है और अगर आस-पास कुछ ऐसा मौजूद न भी हो जो ध्यान भटका सके तो इनका दिमाग खुद अपनी कल्पना से कुछ क्रिएट कर देता है और ये अपने ख्यालों में गुम हो जाते हैं।

  • वीडियो गेम को घंटों तक इसलिए खेल पाते हैं क्योंकि उसमें पल-पल में स्क्रीन पर सब बदल रहा होता है. फ्लैशी लाइट्स, म्यूजिक, और एक सेकंड से भी कम समय में बदलते दृश्य। हर सेकंड बदलाव चाहने वाला दिमाग वीडियो गेम में घंटों रमा रह सकता है. ऐसा आपको लग रहा होता है कि वह “एकाग्र हो कर” खेल रहा है पर वास्तव में तो उसका दिमाग पल पल स्विच होने वाले सिस्टम पर ही कायम होता है.
  • जिस कार्य को ये रूचि पूर्वक कर पाएँ और बार बार दोहरा पाएँ, उसे ये अच्छे से याद रख पाते हैं। स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में जैसे क्रिकेट देखना जिसमें स्क्रीन पर बहुत कुछ एक साथ चल रहा होता है कमेंट्री, बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग, दर्शकों का शोर यानी कुल मिला कर दिमाग को लगातार स्विच होते रहने का मौका मिलता रहता है इसलिए इनको एक जगह ध्यान एकाग्र करने का तनाव नहीं लेना पड़ता और जब तनाव नहीं होता तो रूचि बनी रहती है. जब रूचि बनी रहती है तो सीखना/याद रखना सहज संभव हो जाता है। इसलिए आपके लाड़ले को क्रिकेटर्स के नाम तो याद रहते हैं पर मैथ्स की टेबल्स याद नहीं रहती। पढ़ाते समय आप शान्ति रखते हैं ताकि ध्यान न भटके और यही ध्यान एकाग्र रखने का दबाव बच्चों में तनाव उत्पन्न करता है. ध्यान एकाग्र तब भी नहीं हो पाता और तनाव के कारण रूचि भी समाप्त हो जाती है नतीजा – लर्निंग नहीं हो पाती।

अधीरता (Impulsivity)

पेरेंट्स इसके बारे में कुछ इस तरह बात करते हैं

  • ये दस साल का हो गया है और अभी भी इसे इतना समझ नहीं आता कि जब मैं बोल रही हूँ तो बीच में बात काट कर बोलना शुरू न करे। किसी भी बातचीत के बीच ये अचानक से कब क्या बोल दे कुछ कह नहीं सकते।
  • मुझे इसको साइकिल चलाने देने में भी डर लगता है. हालाँकि इसे साइकिल चलाना आता है पर फिर भी यह बिना गिरे-पड़े या टकराये नहीं चलाता। कभी कभी तो लगता है जानबूझ कर करता है ऐसा।

टीचर्स की शिकायतें कुछ ऐसी होंगी

  • इस बच्चे पर हर समय नज़र रखनी पड़ती है.
  • बाकि बच्चे इसे बहुत चिढ़ाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इसे चिढ़ाना बहुत आसान है.
  • ये अपनी बारी का इंतज़ार नहीं कर सकता, सवाल पूछते ही बिना हाथ खड़ा किये सीधा जवाब दे देता है। अक्सर तो सवाल भी पूरा नहीं सुनता। जब आता भी नहीं है तब भी पता नहीं क्या जल्दी रहती है इसे जवाब देने की!

मनोवैज्ञानिक आपको बताना चाहेंगे

एडीएचडी (ADHD) के तीन प्रमुख लक्षणों में से एक हैं “अधीरता” यानी impulsivityयानी बिना सोचे समझे बस,

– कुछ भी कर जाना.

– कुछ भी बोल जाना.

  • ऐसा नहीं हैं कि ये बच्चे ऐसा व्यवहार जानबूझ कर रहे हों। और ऐसा भी नहीं है कि इनको पता नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत। ऐसा भी नहीं हैं कि इनको क्लासरूम या प्लेग्राउंड के सामान्य अनुशासन की जानकारी नहीं होती। पता इन्हें सब होता है, याद भी इन्हें सब होता है पर इनका दिमाग उस जानकारी का इस्तेमाल करने की प्रतीक्षा नहीं करता और जैसे कुछ होता है ये तुरंत प्रतिक्रिया दे बैठते हैं – “क्या कर दिया” यह सोचते बाद में हैं। और तब तक देर हो चुकी होती है क्योंकि ये फिर से वही “गलती कर चुके होते हैं” और फिर से “मुश्किल में आ चुके होते हैं”
  • माता पिता और टीचर्स अक्सर हैरान होते रहते हैं कि ये इतना भी बेवकूफ तो नहीं है जो ऐसी गलतियाँ करें ! इतनी मूर्खतापूर्ण गलतियाँ या लापरवाहियाँ तो कोई मंदबुद्धि करता है और इसका दिमाग इतना भी कमजोर नहीं है.

प्लेग्राउंड में अगर बच्चे को कोई धक्का लगे तो वह पहले यह देखता है कि धक्का जानबूझ कर लगा या अनजाने में, जिस से धक्का लगा वह मित्र है या कोई अनजान और अगर उसे वापस धक्का देना भी हो तब भी यह जरूर देख लेता है कि कोई टीचर देख तो नहीं रही पर एडीएचडी (ADHD) वाला बच्चा इस में से कुछ भी नहीं सोचेगा वह धक्का लगते ही तुरंत वापस धक्का दे देगा और कितना तेज धक्का देना है इसका भी कोई अंदाज़ा नहीं लगाएगा, वह यह कार्य अपनी पूरी शक्ति से करेगा। नतीजा यह होता है कि उसे “बखेड़ा खड़ा करने वाला बच्चा” का लेबल मिल जाता है। “गुस्सैल” ” बदतमीज ” जैसे लेबल इन्हें हर रोज मिलते रहते हैं।

  • दरअसल न तो ये गुस्सैल हैं और न ही बदतमीज। इनके और आपके दिमाग की फंक्शनिंग में एक छोटा सा अंतर है. कभी आपका हाथ किसी तेज गर्म वस्तु को छू जाये तो क्या होता है? आपका हाथ तुरंत वहाँ से हट जाता है. है न ? यहाँ मैंने लिखा कि “हाथ गर्म वस्तु को छू जाये तो क्या होता है?” यह नहीं लिखा कि “हाथ गर्म वस्तु को छू जाये तो आप क्या करते हैं?” क्योंकि हाथ का तुरंत वहाँ से हट जाना दरअसल में एक रेफ्लेक्सिव एक्शन है यानी कि “अपने आप होने वाली क्रिया।” वस्तु गर्म थी… हाथ जल गया.. यह सब आप “बाद में” सोचते हैं और हाथ को हटाने का काम पहले ही “कर चुके” होते हैं। यानी आपने भी “करने के बाद सोचा” कि क्या कर दिया.
  • हालाँकि इस तरह का व्यवहार दिमाग सिर्फ ऐसी आपात स्थितियों में ही करता है पर एडीएचडी (ADHD) की स्थिति में दिमाग अधिकांश परिस्थितियों में इसी रेफ्लेक्सिव एक्शन को अपनाता है। इसमें कुछ भी “जानबूझ” करने जैसा नहीं है बल्कि सच तो यह हैं कि दिमाग इतना समय लेता ही नहीं कि वह क्लासरूम के या प्लेग्राउंड के या आपके द्वारा समझाए गए नियमों को खंगाले और फिर प्रतिक्रिया दे। प्रतिक्रिया तुरंत हो जाती है ठीक वैसे ही जैसे गर्म वस्तु को छूते ही बिना आपसे सलाह मशविरा किये आपका हाथ तुरंत वहाँ से हट जाता है।
  • हालाँकि समय और अनुभव के साथ ये बच्चे भी सीखते हैं पर इनके सीखने की गति सामान्य बच्चों से काफी कम होती है।

अति सक्रियता (Hyperactivity)

पेरेंट्स कुछ इस तरह बताएँगे –

  • ये पैदा होने से पहले ही बहुत ज्यादा एक्टिव था।
  • दो साल का था तब भी ऐसा था जैसे बिना ढक्कन के चलता हुआ मिक्सर!! पल में इधर से उधर बवंडर की तरह।
  • हम किसी के घर जाएँ तो इसको उनके घर की हर एक चीज को हाथ लगाना होता है।

टीचर्स कुछ इस तरह कहेंगे

  • ये अपनी सीट पर टिक कर बैठ ही नहीं सकता।
  • इसको हर वक़्त पास वाले बच्चे से बात करनी होती है चाहे इसकी सीट कितनी भी बार बदल दो. इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि इसके पास कौन बैठा है… इसे बस बोलना है।
  • इसका हर वक़्त लगातार पेंसिल से ठक-ठक करते रहना बहुत परेशान करता है.

मनोवैज्ञानिक आपको बताना चाहेंगे

हाइपर एक्टिविटी एडीएचडी (ADHD) का सबसे प्रमुख लक्षण है। इस समस्या से ग्रस्त बच्चों की माएँ अक्सर यह कहते हुए मिलती हैं कि यह बच्चा गर्भावस्था के दौरान भी अत्यधिक एक्टिव था। यह अत्यधिक एक्टिव होना वास्तव में बालसुलभ चंचलता नहीं बल्कि कोई समस्या है इसका पता अक्सर तभी चल पाता है जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है। चाहे वह प्ले स्कूल ही जाये पर वहां भी कुछ हद तक आत्म नियंत्रण की दरकार होती ही है और तब ये बच्चे सामान्य आत्म नियंत्रण भी प्रदर्शित नहीं कर पाते। ऐसा लगता है ये किसी हवाई घोड़े पर सवार हैं !

  • ये स्टोरी टाइम जैसी एक्टिविटीज के दौरान पांच-दस मिनट भी टिक नहीं पाते। ड्राइंग कलरिंग जैसे छोटे छोटे टास्क करने भी इनको भारी लगते हैं. जब दस दस मिनट की एक्टिविटीज में ये अपने “एक्टिव रहने को” नियंत्रित नहीं कर पाते और अगर इन्हें बाध्य किया जाये तो ये पेंसिल या किसी भी वस्तु से लगातार कुछ बजाते रहने जैसे कार्य में लग जाते हैं यानी कि इनके पाँव नहीं चलेंगे तो हाथ चलते रहेंगे और हाथ भी नहीं चलने देंगे तो ये पास वाले से बातें करते रहेंगे और पास में कोई नहीं होगा तो मुँह से हम्म्म हम्म्म जैसी कुछ भी आवाजे निकालते रहेंगे — बिना रुके लगातार !
  • प्री स्कूल के थोड़े से समय के औपचारिक वातावरण (फॉर्मल सेटिंग) में ही यह समझ आ जाता है कि जिसे आप बच्चे का “एक्टिव” होना समझ रहे हैं वह वास्तव में एक “बेचैनी” है!
  • यह बेचैनी किसी भावनात्मक उलझन या परिस्थिति के कारण नहीं है बल्कि यह नर्वस सिस्टम की समस्या है। ब्रेन का वह भाग जिसे स्थिरता कायम रखना है वह अपना कार्य ठीक से नहीं कर पा रहा इसलिए इन बच्चों को स्थिर रहने में दिक्कत होती है।

एडीएचडी (ADHD) वाले दिमाग की इस अलग सी सेटिंग को आप रिसेट तो नहीं कर सकते पर स्थितियों को काफी हद तक संभाला जरूर जा सकता है। बिहेवियर थेरेपी, दवाओं, घर और स्कूल में उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था और बतौर माता पिता आपके प्रेम और धैर्य से ये सभी समस्याएँ काफी हद तक सुलझायी जा सकती हैं। कैसे – इस बारे में अगले आर्टिकल्स में बात करेंगे।

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