मनःस्थली (Mental Health)

हैं आप में गट्स (Guts)? पर… Guts मतलब?

GUT – सुना हैं न ये नाम आपने? Guts है तुम में कुछ कर दिखाने का? या मेरी gut feeling कहती हैं कि…वहाँ जाना ठीक नहीं रहेगा।क्या होता है ये Gut? जो आत्मविश्वास भी दर्शाता हैं और अन्तः प्रेरणा / छठी इंद्री भी।बायोलॉजी इस शब्द का सरलतम अर्थ बताती हैं – Gut यानि हमारी आंत (intestine) का एक भाग।

एक शब्द और उसके इतने अर्थ ! सिर्फ संयोग हैं क्या ?जी नहीं संयोग नहीं हैं। बड़ा गहरा सम्बन्ध हैं हमारी आंत के इस छोटे से हिस्से का हमारे आत्मविश्वास से, हमारी छठी इंद्री से और साथ ही हमारे मानसिक स्वास्थ्य से भी। यहाँ तक कि डिप्रेशन जैसे मानसिक रोग की जड़ें भी हमारे ह्रदय से नहीं बल्कि पेट से जुड़ीं हैं ! इसी Gut से।

हमारी आंत सिर्फ भोजन ही नहीं पचाती बल्कि ये किसी का घर भी हैं। बैक्टीरिया का घर। और कोई 10-20 नहीं…अरबों की संख्यां में बैक्टीरिया रहते हैं हमारी आंत में ! इतने.. कि अगर इन सभी को एक साथ मिला कर इनका वजन किया जाये तो ये हमारे मस्तिष्क के वजन से दुगुना होगा !!क्या करते हैं ये बैक्टीरिया हमारे शरीर में? शायद आपको अंदाज़ा होगा की ये भोजन को पचाने में मदद करते हैं। ये भोजन से विटामिन्स ले कर हमें उपलब्ध करवाते हैं और हमारे लिए इन्फेक्शन्स से लड़ते भी हैं। यानि मुफ्त में नहीं रह रहे ये हमारे शरीर में ! पर इन्हें महज़ किरायेदार समझने की भूल न कीजिये। ये बड़े कमाल की चीज हैं !हाल ही में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए ताज़ा शोध से पता चला हैं इस बैक्टीरिया समुदाय की पकड़ सिर्फ पेट तक ही नहीं हैं.. बड़े high contacts हैं इनके – आपके शरीर की सबसे ऊंचाई पर स्थित – आपके मस्तिष्क तक !

• एक दशक तक चले इन शोध कार्यों के नतीजे बता रहे हैं की ये बैक्टीरिया आपकी भावनाओं को और आपके मूड को भी नियंत्रित कर रहे हैं। दिमाग के वे हिस्से जो भावनाओं को कण्ट्रोल करते हैं उन हिस्सों का मैनेजमेंट इन्हीं बैक्टीरिया के हाथों में है!

• मस्तिष्क से आने वाले तंत्रिका तंतु जो पेट की आंत तक जाते हैं उनसे एक विशेष रासायनिक भाषा में बतियाते हैं ये बैक्टीरिया ! इन्हें हमारे दिमाग का personal counselor ही समझ लीजिये ! हमारा दिमाग अपनी हर उलझन के हल के लिए इन्हीं से संपर्क करता हैं। हमारे ये मैनेजर्स (बैक्टीरिया) जब अपना काम बखूबी करते हैं तो हममें भरपूर आत्मविश्वास रहता हैं, हमारी सूझबूझ को बढ़ाते है (intution), हमारी सोच को सकारात्मक रखते हैं और जब ये अपना काम अच्छे से नहीं कर रहे होते- वे लोग भावनात्मक कमजोरी, हीनता, और अवसाद, एकाग्रता से जुडी परेशानियाँ जैसे adhd, ऑटिज्म के शिकार भी पाए जाते हैं।

• चिकित्सा विज्ञानं ने अनेकानेक मानसिक परेशानियों के लिए इन बैक्टीरिया को जिम्मेदार पाया। चिकित्सकों ने बताया की डिप्रेशन की शुरुआत से पहले लोगों को पाचन तंत्र में समस्या शुरू होती है।

“प्रोबायोटिक” नाम हैं इन बैक्टीरिया का और इन्हें वे ही चीजें ताकत देती हैं जिनमें प्रोबायोटिक बैक्टीरिया हो। इनके पसंदीदा आहार में शामिल हैं – दही, छाछ, मटर, पत्तागोभी, पनीर, खमीर उठाया हुआ भोजन जैसे इडली, सोयाबीन आदि।रिसर्च के अनुसार जब डिप्रेशन के मरीजों को probiotic आहार दिया गया तो उनके डिप्रेशन में बहुत कमी आयी। एकाग्रता बढ़ीं। उनकी सोच से नकारात्मकता में काफी कमी आयी।

ये तो हुई ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की ताज़ा शोध पर क्या हमारे यहाँ सदियों से नहीं कहा जाता “जैसा अन्न वैसा मन” तो महज मुहावरा नहीं वैज्ञानिक सिध्दांत हैं ये शब्द। जो भोजन हम खाएंगे वही हमारे मस्तिष्क के भावना-केंद्र का मैनेजमेंट देखेगा।

बच्चा माँ के गर्भ में नाभि से जुड़ा होता हैं उसकी नाभि से जुडी नाल उसे पचाया हुआ भोजन देने के साथ-साथ अपने प्रोबायोटिक बैक्टीरिया भी दे रही होती हैं इसलिए बच्चा माँ के साथ सिर्फ भोजन ही नहीं बल्कि माँ की “सोच” भी साझा कर रहा होता हैं- इसलिए गर्भावस्था में माँ की भावनात्मक स्थिति बच्चे के स्वभाव को प्रभावित करती हैं !

ध्यान-साधना सिखाने वाले गुरु सर्वप्रथम नाभि पर ध्यान केंद्रित करवाते हैं। साधना का पहला बल नाभि को दिया जाता है जो नाभि के पीछे स्थित इन्हीं प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को सबल बनाता हैं। सबल बैक्टेरिया मस्तिष्क के एकाग्रता बढ़ाने वाले केंद्र तक रासायनिक बल पहुंचाते हैं। गहरे ध्यान में उतरने के लिए एकाग्रता पहली शर्त जो हैं। नाभि पर ध्यान केंद्रित कर के आप अनेक रोगों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं -जैसे डायबीटीज़ !

सृष्टि का एक नियम हैं “इस हाथ दें उस हाथ लें” इनसे अगर ये सब काम लेना हैं तो कुछ तो आपको भी इन्हें देना होगा। क्या चाहते हैं ये बदले में ?

1. एक ही तरह का भोजन ना कीजिये -एक ही तरह का भोजन खाने से इन बैक्टीरिया को पोषण नहीं मिल पाता जिससे इनके गुणों में कमीं आने लगती हैं। जाहिर हैं, जिसके जिम्मे इतने सारे तरह के काम होंगे उस टीम के पास अलग-अलग गुण भी तो होने चाहिए। भोजन में विविधता ला कर हम अलग-अलग तरह के प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को शरीर में प्रवेश देते हैं और इस तरह सशक्त मैनेजर्स की टीम तैयार होती है। अलग-अलग तरह की दालें, अनाज (जौ, मक्का, बाजरा) इन सब को आहार में शामिल करने से प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को पोषण मिलता हैं।

2. अल्कोहल और सिगेरट का सेवन ना कीजिये-शराब और सिगेरट का सेवन इन बैक्टीरिया की संख्या में तेजी से कमी लाता हैं। पाचन की अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं और साथ में मस्तिष्क की विवेकपूर्ण निर्णय ले सकने की क्षमता भी घटती है।

3. एंटीबायोटिक्स का सेवन ना कीजिये– अगर आपको भी आदत हैं साधारण मौसमी सर्दी-ज़ुखाम में भी एंटीबॉयोटिक लेने की तो संभल जाइये। इनका नाम ही हैं “एंटी-बायोटिक” यानि जो बैक्टीरिया के खिलाफ हो।रिसर्च बताती हैं की ये एंटीबायोटिक्स अच्छे और बुरे बैक्टीरिया में भेद नहीं कर सकते हैं। एक बार जब आप इनकी पूरी डोज़ ले लेते हैं तो ये आंत में स्थित इन महत्वपूर्ण प्रोबायोटिक बैक्टीरिया के संगठन और संख्या दोनों को बहुत बुरी तरह प्रभावित करते हैं। इनके कुछ गुणों का तो पूरी तरह नाश ही हो जाता हैं। अपनी रासायनिक भाषा में बात कर सकने की जो क़ाबलियत इन बैक्टीरिया में होती हैं जिसके चलते ये मस्तिष्क की एकाग्रता और सकारात्मकता को बनाये रख रहे थे वे गुण तेजी से घटते हैं। यही कारण हैं कि लम्बे समय तक दवाओं पर रहने लोगों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता हैं। एंटीबायोटिक्स का एक कोर्स (3 दिन) लेने से इतनी अधिक संख्या में अच्छे बैक्टीरिया ख़त्म हो जाते हैं कि जिन्हें फिर से बनने में २ वर्ष से ज्यादा का समय लगता हैं). इसलिए जब तक कोई गंभीर बीमारीं न हो तो मौसमी वायरल बुखार, सर्दी-ज़ुखाम के लिए एंटीबायोटिक्स लेने से बचे।

4. शारीरिक श्रम कीजिये -शारीरिक श्रम- कसरत, स्पोर्ट्स, सैर, दौड़ना आदि हमारे शरीर के fatty acids की एक chain – butyrate को प्रभावित करते हैं और यहाँ से बहुत से अच्छे बैक्टीरिया का निर्माण होता हैं और इस फैटी एसिड के कारण इन अच्छे बैक्टीरिया के ‘ख़ास गुणों’ में बढ़ोतरी होती हैं। यदि आप तनाव में रहते है तो कसरत या कोई स्पोर्ट, या सिर्फ सैर ही शुरू कर के देख लीजिये आपको मन हल्का महसूस होने लगेगा!

5. पूरी नींद लीजिये -जब हम सोते हैं उसी समय हमारा मस्तिष्क अपनी साफ़ सफाई करता हैं। मस्तिष्क के वे हिस्से जिन पर इस साफ सफाई की जिम्मेदारी हैं उनको guidelines पेट के यही बैक्टीरिया देते हैं, अब अगर आप ठीक से सोयेंगे नहीं तो दिमाग थका हुआ रहेगा (क्योकिं साफ़ सफाई नहीं हो पायेगी) और जब दिमाग थका हुआ रहेगा तो दिमाग की तंत्रिकाएं अपनी रासायनिक भाषा में ये बात इन बैक्टीरिया को बताएंगी – बैक्टीरिया और अधिक मेहनत करेंगे तंत्रिकाओं को निर्देश देने में और उनकी टीम का एक बड़ा हिस्सा इस काम में लगेगा तो दूसरा काम (पाचन) प्रभावित होगा। पाचन ठीक नहीं होगा तो बैक्टीरिया को खुद भी पोषण नहीं मिलेगा अब कमजोर और थकी हुई टीम की कुशलता घटेगी। कमजोर और थकी हुई टीम न ठीक से आपका तनाव कम कर पायेगी, न पाचन सुचारू रख पायेगी और न आपके लिए बीमारियों से लड़ पायेगी। इसलिए जरूरी हैं कि आप अपनी टीम का ख्याल रखें। कैसे? आप हर रोज 6-8 घंटे भरपूर नींद लिया कीजिये बाकि सब ये सम्हाल लेंगे :)तो क्या कहती हैं अब आपकी Gut फीलिंग?अपने Gut- बैक्टीरिया का साथ देने के लिए है आपमें Guts ??

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