Sex Education परवरिश (Parenting)

मम्मा मैं कहाँ से आया? 7 वर्ष तक के बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन

“मम्मा मैं कहाँ से आया…??” एक ऐसा सवाल जो हर बच्चा कभी न कभी पूछता जरूर है और जिसे सुन कर मम्मा थोड़ा सा घबरा जाती हैं… पापा जरा संभल कर बैठ जाते हैं और फिर सकुचाये लहज़े से सारा जिम्मा भगवान जी पर या परियों पर, या बड़े पंखों वाले सफ़ेद हंस पर डाल दिया जाता है। ऐसे उत्तरों पर पिछले दशक वाले बच्चे (शायद) यकीन कर भी लेते थे पर अब आपके लाडले इसे हजम नहीं कर पाएंगे। खास तौर पर तब, जब की टीवी/फिल्में/एडवर्टाइजमेंट/ यूट्यूब वीडियो/कार्टून शोज उन्हें प्रेगनेंसी और बच्चे के जन्म को ले कर काफी कुछ बता चुके हैं। इसलिए आपके जवाब पर वे पलट कर आपसे पूछ सकते हैं, “पर मूवी में तो ऐसा नहीं था. बेबी तो मम्मा के टम्मी में होता है. मैं भी आपकी टम्मी में था?”

वे जन्म की प्रक्रिया को ले कर उत्सुक हैं. यह ख़याल आपको असहज कर सकता है क्योंकि आपके दिमाग में पूरी प्रक्रिया चल रही है। पर वास्तव में छोटे बच्चों को इतने विस्तार से जवाब देने की जरुरत है ही नहीं। इस बारे में आमतौर पर पूछे जाने वाले सवाल और उनके सही और सरल जवाब ये हैं –

* बेबीज कहाँ से आते हैं/ बेबी मम्मा की टम्मी में क्यों होता है?

मम्मा की बॉडी में एक खास जगह होती है जहाँ बेबी ग्रो होते हैं। इस जगह को यूट्रस कहते हैं. जब बच्चे इतने ग्रो हो जाते हैं कि अपने मुँह से दूध पी सकें, अपनी आँखों से देख सकें, अपने कानों से सुन सकें तो फिर वे मम्मा की बॉडी से बाहर आ जाते हैं। वे अभी भी बहुत छोटे होते हैं इसलिए हम उनकी स्पेशल केयर करते हैं उनको बैठना, चलना, बोलना सिखाते हैं।

* बेबी मम्मा की बॉडी से बाहर कैसे आता है ?

हमारी बॉडी में अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग जगह बनी होती है। जैसे हम जो खाना खाते हैं, बॉडी उस खाने से सारा जूस निकाल लेती है और बाकि बची चीज को पॉटी और सुसु बना कर अलग-अलग रास्तों से बाहर निकाल देती है। ऐसे ही मम्मा की बॉडी में बेबी के बाहर आने के लिए भी रास्ता बना होता है। जब बेबी बाहर आने के लिए रेडी होता है तब हॉस्पिटल में डॉक्टर की हेल्प से बेबी को सुरक्षित बाहर ले आते हैं.

इस जवाब से वे आश्चर्य चकित हो सकते हैं और शायद उन्हें ये सोच कर डर भी लगे कि ये सब कैसे होता होगा। उन्हें बताइये कि इसीलिए मम्मी बनने के लिए ‘बड़ा होना’ जरुरी है। तभी बॉडी इस काम के लिए तैयार हो पाती है। और बेबी के आने के बाद मम्मी को पूरा रेस्ट करने की जरुरत होती है। इस जानकारी का फायदा यह होगा कि वे अपने छोटे भाई-बहन के आने पर आपके लिए या किसी अन्य नयी माँ के लिए बहुत सहयोगी साबित होने की कोशिश करेंगे।

बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की शुरुआत कब से की जाए?

जब आप बच्चों को बोलना सिखाने लगते हैं, तब से। जी हाँ, सेक्स एजुकेशन की शुरुआत का मतलब यौन सम्बन्धों की जानकारी देना नहीं है। शुरुआत शरीर के सभी अंगों के नामों की सही जानकारी देने से कीजिये। आँख, नाक, कान, सिर, पेट, हाथ, पैर, अंगुली, अंगूठा की तरह ही पेनिस का भी अपने नाम से परिचय करवाया जाना चाहिए। बहुत बार लोग पेनिस और गुदा द्वार के लिए “छी-छी वाली जगह” जैसे शब्द प्रयोग करने लगते हैं। यह गलत है। आप उन सामान्य और सही शब्दों को सिखाइये जो प्रचलन में हैं फिर वे हिंदी में हो या अंग्रेजी में इस से कोई अंतर नहीं पड़ता। आप शरीर के गुप्तांगों के लिए कैसी भाषा, कैसा लहज़ा, कैसा रवैया रखते हैं इस से बच्चों का अपने शरीर के प्रति ख़ास तौर पर गुप्तांगों के प्रति नज़रिया बनता है। आगे आने वाले वर्षों में जिन अंगों के भावी उपयोग की जानकारी आपको उन्हें देनी है उन अंगों के नामों के बारे में खुद सहज होना और अपने बच्चों को सहज रखना सेक्स एजुकेशन की पहली सीढ़ी है।

हालाँकि कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम अपने बच्चों तक नहीं पहुँचने देना चाहते पर वे शब्द टीवी/रेडियो पर बजते गानों, स्कूल में अन्य बच्चों के मुँह से या कई और तरीक़ों से उन तक पहुँच ही जाएगा। कई बार किसी शब्द और उन से जुड़े विषय को बहुत अनदेखा करना ही उन्हें बहुत आकर्षक बना देता है! ऐसे ही दो शब्द हैं “सेक्स” और “सेक्सी”

सेक्स क्या होता है? इस प्रश्न के उत्तर को न तो टालने की जरुरत है और न ही बच्चों को डपटने की।

उन्हें बताइए कि सेक्स का मतलब होता हैं “gender”. स्कूल के फॉर्म्स और बच्चों के आईडी कार्ड पर ही लिखा होता है ‘Sex’ जिसके आगे Male/Female/Other भरना होता है। आप उन्हें उनका आईडी कार्ड दिखा सकते हैं।

किसी गाने को सुन कर वे “सेक्सी” शब्द का प्रयोग कर सकते हैं या आपसे इसका मतलब पूछ सकते हैं। उन्हें बताइये कि सेक्सी का मतलब है अपने जेंडर के अनुसार आकर्षक दिखना और साथ ही यह भी बताइये कि “सेक्सी” एक रिस्पेक्टफुल वर्डनहीं है और इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। तारीफ करने के लिए सुन्दर/स्मार्ट/ ब्यूटीफुल/ हैंडसम सही शब्द है। चाहे हम किसी की तारीफ कर रहें हों या किसी से हँसी-मज़ाक कर रहे हों, हमें अपनी और दूसरों की बॉडी की हमेशा रिस्पेक्ट करनी चाहिए। जैसे किसी का रंग सांवला हो, या कोई बहुत मोटा या बहुत पतला हो तो उसकी बॉडी का मजाक उड़ाना बुरी बात है. ऐसे ही किसी की तारीफ करते समय भी गलत शब्दों का इस्तेमाल करना बुरी बात है। शब्द ऐसे होने चाहिए जिनसे तारीफ भी हो और रिस्पेक्ट भी हो।

बच्चों के खेल पर रखिये नज़र –

बच्चे आपके घर पर खेल रहें हों या पड़ोस में खेलने जाते हों, वे क्या खेलते हैं इसकी आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए। “आज क्या खेला?” के जवाब में आपको आधे घंटे तक चलने वाला लम्बा वृतांत सुनना पड़ सकता है पर उसे सुनिए और पूरी दिलचस्पी ले कर सुनिए (आपका ध्यान /रूचि नहीं है, इसे बच्चे बखूबी समझ जाते हैं). वे अपने किसी खेल को “मम्मी पापा से छुपाना है” के उद्देश्य से नहीं खेलते इसलिए वे पूरी ईमानदारी से आपको सब कुछ बता देंगे (बशर्ते आप रूचि ले कर सुनें और बीच में ही उन्हें डाँटना न शुरू कर दें) उनकी बात सुन लेने के बाद अगर आपको लगे कि उनके उस खेल में कुछ गलत था (चाहे सुरक्षा के दृष्टि से या फिर वे “मम्मी पापा और फैमिली वाला कोई गेम” खेल रहे थे और उस में कुछ संदिग्ध था) तो आप धैर्य पूर्वक उनसे बात कीजिये। आपके शब्द सरल, दी जाने वाली जानकारी सही और आपका रवैया स्नेहिल होना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में क्या कहा जाए इसके लिए आप इस आर्टिकल को पढ़ सकते हैं – मम्मा सेक्स क्या होता है ?

सात वर्ष तक के बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन का हिस्सा है –

  • शरीर के सभी अंगों के सही नामों की जानकारी देना
  • अपने और दूसरों के शरीर को सम्मान देने के अर्थ को समझाना (कपड़े बदलते समय अपनी और दूसरों की निजता/प्राइवेसी का ध्यान रखना)
  • गुड टच और बेड टच के बारे में उन्हें जानकारी देना
  • बच्चों के जन्म प्रक्रिया के बारे में अगर वे प्रश्न करें तो यथोचित जानकारी दे कर उनकी जिज्ञासा को शांत करना।

आजकल बदलते खानपान और वातावरणीय बदलावों के चलते वय संधि यानी प्यूबर्टी का समय आठ-नौ वर्ष की आयु से ही शुरू होने लगा है। आठ से बारह वर्ष की उम्र में बच्चों का शरीर आने वाले बड़े बदलावों की प्रक्रिया को शुरू कर देता है। मासिक धर्म, वक्ष स्थल के बदलाव, बगल और प्यूबिक क्षेत्र में बाल आना जैसे कई बाहरी बदलाव अंदर हो रहे हार्मोनल बदलावों की निशानियाँ हैं। इस समय बच्चों में शरीर को ले कर एक संकोच सा आने लगता है। बतौर माँ आपके लिए आठ से बारह वर्ष का समय बहुत महत्वपूर्ण है आपको इस दौरान उन्हें शरीर के बदलाव, बदलावों के कारण, यौनांगों के कार्य और उनके साथ आने वाली नयी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को सिखाना है। ये जिम्मेदारियाँ कई स्तरों पर एक साथ आएँगी – शारीरिक, नैतिक और सामाजिक. कैसे मिलवाएँ बच्चों को इनसे, जिस से कि ये सब उनकी जिंदगी में किसी आफ़त की तरह न आये! इस पर बात करेंगे अगले आर्टिकल में।

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