स्वप्न – मन के तहखाने से आये सन्देश!
सपने हमेशा से एक रहस्यमयी चीज रहें हैं। हम सब हर रोज सपने देखते हैं कुछ सपने हमें याद रहते हैं, कुछ नहीं। कुछ सपने ख़ुशी देते हैं तो कुछ डराते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जो पहेली सा उलझा जाते हैं। सदियों से सपने एक रहस्यमयी चीज रहें हैं। पंडित इसे शगुन-अपशगुन से जोड़ते हैं तो चिकित्सा विज्ञान इसे मस्तिष्क के तंत्रिका तंतुओ के बीच रासायनिक लेन-देन से ज्यादा कुछ नहीं मानता। पर मनोविज्ञान इन दोनों से अलग राय रखता है। वह न तो इन्हें निरर्थक रासायनिक क्रिया मानता है और न ही कोई शगुन या भविष्यवाणी।
मनोविज्ञान कहता है कि स्वप्न वह शानदार मार्ग है जो आपके मन के सबसे गहरे तल तक जाता है। मन का वह तहख़ाना जहाँ बसने वाले विचारों/इच्छाओं से खुद आपकी भी रोज मुलाकात नहीं होती, वहां तक हर रोज आपकी चेतना जाती है – तब, जब आप गहरी नींद सोये होते हैं। यह मुलाकात कुछ दृश्यों के रूप में आपकी स्मृति में अंकित हो जाती हैं, फिर जब आप जागते हैं तो उन दृश्यों के अर्थ निकालते हैं। पर यहीं पर सारा खेल रहस्यमयी हो जाता है क्योंकि सपने में जो कुछ आपने देखा होता है वास्तव में उसका अर्थ वह होता ही नहीं है। हाँ, यह हो सकता है कि “आपको लगे” की आपने सपने के अर्थ को समझ लिया है पर सच कुछ और ही है। वे सच क्या है यह समझने के लिए सपनों के बारे में कुछ बातें समझनी होंगी।
1. अगर वह स्वप्न वाकई महत्वपूर्ण हैं तो जागने पर आप उसे भूलेंगे नहीं
नींद में हमारे दिमाग का सफाई विभाग ड्यूटी पर होता है। इस दौरान “काम के विचार” और “बेकार के विचारों” की छँटनी करने का काम चलता रहता है। इसी छँटनी के दौरान कई बातें स्वप्न का रूप ले लेती हैं पर ऐसे स्वप्न किसी भी पूर्ण दृश्य का रूप नहीं ले पाते, ऐसा लगता है कि कोई जंजाल सा चल रहा हो… ऐसे स्वप्न सुबह उठने पर याद भी नहीं रहते या फिर ऐसा लगता है कि “अस्पष्ट सा कुछ तो चल रहा था”। जो सपने आपकी आज की मनोस्थिति से गहरा सम्बन्ध रखते होंगे वे आपको स्पष्ट भी दिखेंगे और याद भी रहेंगे और आप अपने मन को उनसे जुड़ा भी महसूस करेंगे।
2. सपनों का सम्बन्ध सिर्फ भाव से होता है किस्सों से नहीं
एक बहुत सामान्य रूप से देखा जाने वाला सपना है — खुद को परीक्षा के लिए लेट होते हुए देखना, या परीक्षा कक्ष न मिलना, या परीक्षा के समय पेन न मिलना या उसका न चलना। सपनों के इन पैटर्न का सीधा संबंध हमारे मन में बसे उस भाव से है जिसका सामना हमने बचपन से ले कर जवानी तक किया होता है।
स्कूल में दाखिल होने की उम्र से लेकर जब तक हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते, तब तक परीक्षा में मिले अंकों से ही हमारी योग्यता आंकी जाती है. इसलिए जब हम बतौर वयस्क भी किसी ऐसे तनाव वाली स्थिति में होते हैं जब हमें लग रहा हो कि हमें परखा जायेगा यानी कि हमारी छवि पर फर्क पड़ने वाला है तो हमें किसी परीक्षा की तैयारी करने जैसी घबराहट सी महसूस हो रही होती है. जैसे हो सकता हैं किसी पारिवारिक परिस्थिति में आप पर ख़ुद को सही साबित करने का दबाव हो या यह तनाव हो कि आपकी सामाजिक छवि बन या बिगड़ सकती है। यह परिस्थिति परिवार, वर्कप्लेस यहाँ तक कि पास-पड़ोस या सोशल सर्कल में भी उत्पन्न हुई हो तब भी वह दबाव आपको ऐसे सपने दिखा सकता है। हमारा दिमाग इस वाले तनाव को अच्छी तरह पहचानता है.. आखिर बरसों बरस यही दिमाग परीक्षा और रिजल्ट को लेकर इस तनाव से हर साल गुजरा है ! अब जब फिर खुद को सिद्ध करने का समय आता है तो स्मृति पटल उस तनाव के साथ जुड़े हुए पुराने दृश्य (जो के अचेतन मन में स्टोर हो रखे थे) को पटल पर ले आता है और आज का तनाव “उन दृश्यों से सम्बन्धित” होने की वजह से सपने के रूप में चलने लगता हैं।
3. जो कुछ स्वप्न में देखा है उसका सामान्य अर्थ नहीं व्यक्तिगत/निजी अर्थ निकालिये
जैसे कि आपने स्वप्न में अपनी स्वर्गीय दादा जी को देखा तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आपने अपने दिवंगत पूर्वज को देखा है बल्कि इसका अर्थ यह है कि इन दिनों आपके जीवन में कुछ ऐसा चल रहा है जिसकी वजह से आपके मन में वैसे विचार आ रहे है जैसे कि दादा जी के साथ के किसी वाक़िये के समय आते थे।
दरअसल हमारे दिमाग ने जिन विचारों को बार-बार या बहुत शिद्दत से जीया होता है उन्हें वह अपनी परमानेंट स्मृति में संजो लेता है और जब कभी कोई ऐसी घटना होती है जो कि उस पुराने विचार को छेड़ती हैं तो दिमाग स्वप्न में उस बात से जुड़े व्यक्ति को हमें दिखाने लगता है क्योंकि दिमाग ने “उस विचार के साथ किसी व्यक्ति को जोड़ कर” संजो लिया था।
एक उदहारण से समझिये, मान लीजिये किसी व्यक्ति के दादाजी अत्यंत अनुशासन प्रिय और बहुत सख्त स्वभाव के थे। जब वह छोटा था तो दादाजी से बहुत डरता था। कभी कोई गलती हो जाने पर कोई दादाजी से शिकायत न कर दे यह डर भी सदा बना रहता था। दादाजी सबके सामने कठोर दंड दिया करते थे और उसे अपने मित्रों के सामने बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी।
अब दादाजी को गुजरे कई वर्ष बीत चुके हैं, वह व्यक्ति अब वयस्क है और एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत है। इन दिनों किसी प्रोजेक्ट को ले कर काम का दबाव बहुत अधिक है। उसे लग रहा है कि वह अच्छा नहीं कर पायेगा। उसके प्रदर्शन पर उसका प्रमोशन भी टिका है। उस पर अपने साथियों के आगे बेहतरीन प्रदर्शन का दबाव भी है। इन्हीं सब उलझनों और काम के दबाव के दौरान उसे रात को सपने में दादाजी दिखाई देते हैं। अब यहाँ दादाजी कुछ कहने नहीं आये हैं। बल्कि वह “अच्छा न कर पाने का डर” “कुछ पाने से वंचित रह जाने का डर” “साथियों के सामने शर्मिंदा हो जाने का डर” ये सारे डर दिमाग को याद है! और कई बरसों तक इस डर के पास चेहरा भी था — दादाजी का चेहरा।
अब रात को नींद आने के बाद दिमाग के तंतुओं का अपना साफ़ सफाई का काम चालू होता है यानी कि काम के और बेकार के विचारों की छंटनी करना। इस छंटनी का सिर्फ एक आधार होता है : जो विचार ज्यादा बार सोचे गए वे काम के हैं — उन्हें सेव कर के रख लो और जिन्हें बहुत कम बार सोचा वे बेकार के विचार हैं उन्हें डिलीट कर दिया जाता है। ऐसा करते हुए जब इस डर वाले विचार का नंबर आता है तो दिमाग फ़ौरन इस विचार को पहचान लेता है और कहता है कि यह “काम का विचार” है ऐसे विचारों का कोष मेरे पास रखा है और वह फ़ौरन “दादाजी की छवि” और “वे डर वाले विचार” ऊपर निकाल लाता है। जैसे ही कोई छवि निकल कर आती है दिमाग के तंतु उस दृश्य को पटल पर ले आते हैं और सपना शुरू हो जाता है और सपने में दादाजी की एन्ट्री हो जाती है।
दादाजी कुछ कहने नहीं आये हैं. उनका दिखना सिर्फ यह बता रहा है कि आज फिर मन उसी भाव से गुजर रहा है जिस से “तब भी” “दादाजी के साथ वाले समय में” गुजरा करता था।
4. स्वप्न हमेशा ठीक वैसा ही नहीं दिखता जैसा जीवन में घट रहा है
अगर किसी भाव को हम बहुत शिद्दत से महसूस कर रहें हों तो स्वप्न हमारे मन के उस भाव को चरम पर ले जा कर दर्शाते हैं। मान लीजिये कोई स्त्री स्वप्न में यह देखती है कि उसके पति का किसी अन्य महिला के साथ सम्बन्ध हैं। अब इस स्वप्न का यह अर्थ नहीं है कि उसे अपने पति पर ‘उस तरह’ का शक हो परन्तु इस स्वप्न का यह अर्थ अवश्य है कि वह अपने पति पर बहुत सी अन्य बातों के लिए भरोसा नहीं कर सकती या उन पर निश्चिन्त हो कर “निर्भर” नहीं हो सकती। उसे लगता है पति उसे “सब कुछ” नहीं बताते, पारिवारिक मसलो पर या पैसों के मामले में वे उस से कुछ छुपाते हैं। अब पति का यह बातें “छुपाना” और उसका बतौर पत्नी पति की ओर से “पूरी तरह से निश्चिन्त न रह पाना” ये दोनों बातें वह दिन में कई-कई बार सोचती है इसलिए रात को दिमाग इन बातों को “काम के विचारों” की श्रेणी में डाल देता है और अगर ये विचार बहुत भावपूर्ण तरह से सोचे गए होंगे तो इनकी आवृत्ति और भी गहरी होगी ऐसे में दिमाग इन्हें “अति महत्वपूर्ण विचारों” की श्रेणी में रखेगा और इनके लिए “विशेष मंथन” का काम चालू करेगा। इन्हें इतना विशेष मानते ही दिमाग का स्मृति कोष उन भावों के लिए अपनी तरफ से कुछ दृश्य तैयार करेगा और वह स्त्री स्वप्न में पति को पर-स्त्री के साथ संबंध बनाते हुए देख सकती है क्योंकि “धोखा” वाले भाव के लिए दिमाग के पास सबसे उपयुक्त और “चरम दृश्य” (extreme scenario) वही था इसलिए उसने वही दृश्य पटल पर रख दिया।
5. स्वप्न जो दिखा रहें हों उसका ठीक विपरीत सन्देश भी देते हैं
मन के सबसे गहरे तल की कोई ऐसी इच्छा जिसका पूरा होना हम बहुत-बहुत चाहते तो हों पर जिसे पूरा कर सकने का मार्ग न दिखता हो और इसलिए उसे हमने खुद ही गहरे में दबा दिया हो जब ऐसी कोई इच्छा स्वप्न में अपना मार्ग बनाती है तो वह वहां भी अपने वास्तविक रूप में न आकर विपरीत तरह से आती है। पर उसका वह रूप इतना तीव्र होता है कि स्वप्न में देखे गए उस एहसास को भूल सकना व्यक्ति के लिए संभव नहीं हो पाता।
जैसे कि स्वयं को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र और शर्मिंदा देखना।
यह स्वप्न किसी आने वाली शर्मिंदगी की निशानी नहीं है। स्वप्न में व्यक्ति बेशक यह चाहता है उसे उस तरह से कोई न देखे परन्तु स्वप्न में वह दृश्य ऐसा होता है कि वह सबका पूरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब होता है। यह स्वप्न वास्तव में एक बहुत दबे हुए और कुंठित जीवन की ओर इशारा करता है। यह स्वप्न गृहस्थी में प्रताड़ित स्थिति में रहने वाली स्त्री का भी हो सकता है और कार्यक्षेत्र में शोषण के शिकार पुरुष का भी। वास्तव में व्यक्ति चाहता है उसे दबा कर न रखा जाएँ, उसे “अपनी इच्छा” से जीने की इजाजत दी जाये, कुछ है उसके पास जो वह चाहता है सब सुने. अपने आप को इस दबे ढके जीवन से बाहर निकालने की तड़प को स्वप्न में दिमाग वह दृश्य प्रदान करता है जिसमें उसके न चाहते हुए भी सब उसकी ओर ध्यान देते ही हैं। यह निर्वस्त्र स्थिति दरअसल शरीर की नहीं हैं बल्कि यह व्यक्ति के भीतर का वह सच है, उसकी वह वास्तविक सोच है जिसे वह चाहता है लोग उसे एक “नंगे सच” की तरह जान लें।
बार बार आने वाले बुरे सपने और उनका इलाज
कुछ लोगों को कुछ डरावने/बुरे /विचलित कर देने वाले स्वप्न बार-बार आते हैं। हर बार वही स्वप्न आता है और ठीक वही एहसास होता है। ऐसे स्वप्नों का सम्बन्ध किसी गहरे-सदमे-नुमा भाव से हो सकता है। हो सकता है आपको वह अनुभव याद हो और यह भी हो सकता है कि उस अनुभव से आप बहुत ही छोटी आयु में गुजरे हों इसलिए आपको वह किस्सा याद नहीं है। वह अनुभव खुद आपका हो यह भी जरुरी नहीं, वह अनुभव आपकी माँ का भी हो सकता है — तब, जब आप गर्भ में थे ! मनोचिकित्सा की सम्मोहन पद्धति से उस अनुभव तक पहुंचा जा सकता है परन्तु यह पद्धति सबके लिए सहज-सुलभ नहीं है। ऐसे में क्या किया जाये? साइकोथेरेपी के पास इसका एक और इलाज भी है। हालाँकि यह इलाज सम्मोहन के साथ किया जाये तो अधिक असरदार होता है पर फिर भी यदि आप पूरे मनोयोग से प्रयास करें तो इन दुःस्वप्नों से पीछा छुड़ा सकते हैं।
- जब आप वह दुःस्वप्न देखें तो सुबह उसे लिख लें
- अब उसे एक कहानी की तरह पढ़िए और,
- इस कहानी को सकारात्मक मोड़ देते हुए आगे बढाइये.
- जैसे अगर आप स्वप्न देखते हैं कि आप रात को सुनसान रास्ते पर जा रहीं हैं और आप महसूस करती हैं कि कोई आपका पीछा कर रहा है आप और तेज दौड़ती हैं और वह परछाई अभी भी आपके पीछे आ रही है आप बहुत डरी हुई हैं… पसीने से तरबतर हैं… और अब और दौड़ सकना आपके लिए संभव नहीं हो पा रहा है। आपका घर अब बहुत दूर नहीं है और तभी आप गिर जाती हैं। आपका स्वप्न यहाँ समाप्त हो जाता है — हर बार.
- अब आप इसके आगे लिखिए कि जब आप गिरी तब वह परछाई आप तक पहुँच गयी और उस व्यक्ति ने पास आकर कहा मैं कब से आपको रोक रहा हूँ आप सुन ही नहीं रहीं हैं ये लीजिये आपका पर्स वहां पीछे गिर गया था। आपको पर्स थमा कर वह व्यक्ति लौट गया। आप उठीं और सकुशल अपने घर आ गयीं।
इस कहानी को आपको हर रात सोने से पहले एक बार मन में दोहराना है। ऐसा आपको नींद आने से ठीक पहले करना है। यही वह समय होता है जब हमारा चेतन मन बागडोर अचेतन मन को सौंप रहा होता है। आपको दौड़ने से ले कर गिर जाने तक के दृश्य को जल्दी सोचना है और उसका वहां पहुँच आकर आपको पर्स देना और आपका उसको धन्यवाद कहना और उसका मुस्कुरा कर हाथ जोड़ देना…जैसे दृश्य पूरे भावपूर्ण तरह से सोचने है। आप कहानी के इस दूसरे भाग को जितना सुखद और सहज बना पायें बनाइये परन्तु इतनी नाटकीय अतिशयोक्ति मत कर दीजियेगा कि दिमाग उसे पहले भाग के साथ जोड़ ही न पाएं और ख़ारिज कर दे।
हमारे सपने हमारे ही मन की कही अनकही बातें हैं। ये हमें अपने आपको समझने और संभाल सकने में सहायता करने ही आते हैं। हमें बस अपने दिमाग के काम करने के तरीके को समझने की जरुरत है। एक बार यह सिस्टम समझ आ जाये तो इसे नियंत्रित करना इतना कठिन भी नहीं !
Good acknowledges, Mystic of Dreams- Depression involvement of afraidness in life path, recure in night as a good and bad Dream.
Good acknowledges, Mystic of Dreams- Depression involvement of afraidness in life path, recure in night as a good and bad Dream.