परवरिश (Parenting)

मम्मा मुझे स्कूल नहीं जाना..!!

“नहीं नहीं मम्मा मुझे नहीं जाना स्कूल… वहाँ तो कितने सारे लोग होंगे ना” कह के नन्ही गुड़िया माँ की गोद में दुबक गयी। पर बेटा स्कूल तो सब बच्चे जाते हैं वहाँ आपको बहुत मज़ा आएगा… वहां पर खूब खिलौने होंगे…वहां पर.. “नहीं मम्मा… मुझे डर लगता हैं… मुझे कहीं नहीं जाना… मुझे बस आपके पास रहना हैं।”

गुड़िया को इस साल से स्कूल भेजना हैं. एडमिशन शुरू होने में अभी 2 महीने हैं पर स्कूल तलाशना तो अभी ही शुरू करना होगा। स्कूल जाने के नाम से अचानक ही गुड़िया की घबराहट बढ़ गयी हैं। अभी कुछ देर पहले तक ऐसा नहीं था जब मम्मा ने बताया की स्कूल जाने को मिलेगा तो इस बात से गुड़िया बहुत खुश हुई थी। उसने देखा था पड़ोस के बच्चे को रोज तैयार हो कर रंग-बिरंगे बैग्स ले कर स्कूल बस में बैठते। “मम्मा ये दीदी भैया सब कहाँ जा रहे हैं…” पूछने पर स्कूल के बारे में सब बताया था मम्मा ने! “वाऑ स्चूल में तो कितना मजा आता हैं…!!” कहते हुए गुड़िया की बड़ी-बड़ी आँखों में कई सपने तैर गए थे। “मुझे भी जाना हैं स्चूल मम्मा… मुझे भी जाना है… चलो ना चलें…”

अभी बस थोड़े से दिन और… फिर जब न्यू बच्चों को लेना शुरू करेंगे स्कूल में, तब आप भी जाना !

वाऊ मैं भी स्चूल जाऊंगा… तालियां बजाती गुड़िया उछलती कूदती सबको बताने चल पड़ी। “भुआ भुआ पता हैं मैं स्चूल जाऊंगा… पापा.. पता हैं स्चूल जाऊंगा… वाऊ!!

“हाँ हाँ जाना स्कूल! फिर पता चलेगा! मैडम ही ठीक करेगी तुझे! खूब पढ़ाई करनी पड़ेगी! सब मस्ती ख़त्म अब!” पड़ोसके घर से आयी आंटी ने गुड़िया को छेड़ा। पापा, भुआ सब हंस दिए… और बोले “और क्या बच्चू सब मस्ती ख़त्म अब तेरी… स्कूल में सबको “ठीक” कर देती हैं मैडम!” 

हंसती फुदकती गुड़िया को जैसे ब्रेक लग गए!  फिर भी अपने बिखरते यकीन को समेटते हुए बोली, “नैई मैडम तो प्यार कलती हैं बच्चों को…”

“मैडम कोई प्यार व्यार नहीं करती!  शैतान बच्चों को ‘सेट’ कर देती हैं वो!” पापा बोले.

“पल…मैं तो अच्छा बच्चा हूँ…” गुड़िया अब थोड़ी रुआंसी हो गयी थी।

वो तो मैडम ही बताएगी अच्छा बच्चा हैं की शैतान बच्चा हैं! और सब ठहाका लगा कर हंस पड़े। अब तक मम्मा वहां आ गयी थी और आखिरी की दो लाइन सुन कर सब समझ भी गयी थी। मम्मा ने एक सख्त नज़र सब पर डाली और गुड़िया को वहाँ से ले गयी।

मम्मा मैं अच्छा बच्चा हूँ ना…?

हाँ बेटू आप तो बहुत अच्छे बच्चे हो

मैडम मुझ पर गुसशा कलेगी क्या ?

नहीं बच्चे, मैडम किसी बच्चे पर गुस्सा नहीं करती। जो शैतानी करते हैं न उनको प्यार से समझाती हैं।

फिल क्यों आंटी ने बोला मैडम गुसशा कलेगी…? वो झूट बोली थी मेले से…? 

बेटू वो मजाक कर रही थी।

“मजाक मतलब…?” गुड़िया ने पूछा।

मजाक मतलब…. एक तरह से झूठ ही बोलना, पर जिस से किसी को परेशानी न हो और सबको हंसी आये, उसको मजाक कहते हैं।

पर मेले को तो हंसी नी आयी थी तो फिल झूट ही हुआ न..? मजाक नई हुआ जे तो!

“हम्म…आप ठीक कह रहे हो ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए। सबका ध्यान रखना चाहिए” मम्मा ने कहा।

मम्मा पर मैं स्चूल नहीं जाऊंगा आपके पास ही रउंगा 

नन्हे मन में एक अनजाना सा डर घर कर ही गया था। यही मम्मा नहीं चाहती थी और यही हो गया था। गुड़िया को सुला के बाहर आयी और घर में सब लोगों को स्पष्ट तौर पर समझाया की गुड़िया के मन में अब कोई भी स्कूल को ले कर भ्रांतियाँ नहीं डालेगा। ‘स्कूल बहुत अच्छी जगह हैं’ यही यकीन उसे फिर से दिलाना हैं। अगली सुबह स्कूल बस का हॉर्न सुन कर रोज की तरह गुड़िया भाग कर बाहर नहीं गयी। मम्मा समझ गयी थी मामला अभी सम्भला नहीं हैं। दिन भर गुड़िया ने स्कूल की कोई बात नहीं की। रात को हर रोज की तरह गुड़िया अपने स्टोरी टाइम के लिए तैयार थी।

 मम्मा कल तो हमाला स्टोरी टाइम ही नहीं हुआ था मैं ऐशे ही सो गया था…आपने मुझे ऐशे ही क्यों शुलाया? 

ओह सॉरी सॉरी !  चलो आज आपको न्यू स्टोरी सुनाते हैं।

“हम्म… फिल ठीक हैं”  गुड़िया मुस्कुरा दी।

“एक बार एक सीड था…एक दम छोटू सा…नन्नू सा”  मम्मा ने कहानी शुरू की. 

“सीड…? वो जो ऑरेंज में होता हैं वो वाला सीड मम्मा?” 

हम्म्म…वही वाला सीड. जमीन में न एक छोटा सा होल था, वो सीड वहीँ पर रहता था। वो अकेला बहुत बोर होता रहता था… पर बाहर जाने में उसको बहुत डर लगता था।

एक दिन उसके घर पर किसी ने नॉक नॉक किया “हेलो… अंदर कोई हैं ? किसी ने आवाज दी।

हाँ मैं हूँ अंदर – सीड. ये मेरा घर हैं। तुम कौन?

“मैं टैडपोल हूँ” बाहर से आवाज आयी। बाहर बहुत ठण्ड हैं… क्या मैं तुम्हारे साथ रह सकता हूँ?

सीड बड़ा खुश हुआ उसने कहा “हाँ हाँ क्यों नहीं जरूर! वैसे भी मेरा कोई फ्रेंड नहीं हैं मैं तो बहुत बोर होता हूँ।” सीड और टैडपोल दोनों साथ-साथ रहने लगें।

“टैडपोल कौन होता हैं मम्मा?” 

हम्म… टैडपोल मतलब मेंढ़क का बेबी. एक दम नन्नू सा बेबी होता हैं वो।

“ओSS अच्छा!”

सीड और टैडपोल खूब खेलते मस्ती करते खूब बातें करते। एक दिन फिर बाहर से आवाज आयी – नॉक नॉक “हेलो… अंदर कोई हैं?

हाँ हाँ हम दोनों हैं न अंदर सीड और टैडपोल। तुम कौन?

मैं हूँ कैटरपिलर! मैं अंदर आ जाऊ?

अरे हाँ क्यों नहीं! आओ आओ! बहुत मजा आएगा हम दो दोस्त थे, अब तीन हो गए!  वो तीनों मजे से रहने लगें। खूब खेलते खूब बातें करते खूब हँसते! ऐसे करते-करते बहुत दिन बीत गए। सर्दियाँ ख़त्म होने वाली थी। एक दिन टैडपोल ने कहा “अब मुझे जाना होगा।”

“जाना होगा!! क्यों? कहाँ?” सीड ने पूछा।

सर्दियाँ ख़त्म होने वाली हैं अब मुझे बाहर जमीन पर सूरज की रौशनी में रहना होगा तभी मैं बड़ा हो सकूंगा।

पर तुमको बड़ा क्यों होना हैं ? हम ऐसे ही खुश तो हैं न !

नहीं नहीं! अगर में बड़ा नहीं होऊंगा तो बाकि लोगों की सहायता कैसे करूँगा? दूसरे नन्नू टैडपोल्स का ख़याल कैसे रखूँगा? बाहर नहीं जाऊंगा तो मैं ये सब करना कैसे सीखूंगा। अब मुझे जाना ही होगा। सीड तुमको भी इस गहराई से थोड़ा ऊपर जाना होगा जहाँ तुम ग्रो हो सकों। तुमको भी तो ट्री बनना हैं न।

ट्री! ट्री कैसे बनते हैं ? सीड ने पूछा।

अरे बहुत आसान हैं बस तुम इसी मिटटी में थोड़ा ऊपर जाओ फिर तुम में से स्प्राउट निकलेगा। उसपे धूप आएगी फिर बारिश आएगी फिर धीरे-धीरे बड़ा होगा और फिर एक दिन तुम ट्री बन जाओगे।

इतना सब होगा!! ओह! मुझे तो सोच कर ही डर लग रहा हैं! मुझसे नहीं होगा ये सब।

जरूर होगा, मेरे दोस्त ! कह कर टैडपोल चला गया। सीडबहुत उदास हुआ। अब वो और कैटरपिलर रह गए थे।

कुछ दिन बाद कैटरपिलर ने कहा “सीड अब मुझे भी जाना होगा।”

अरे तुमको क्यों जाना हैं!!

जाना होगा सीड मैं इस छोटे से होल में नहीं रह सकती। अब मेरा बटरफ्लाई बनने का वक़्त आ गया हैं। मुझे बटरफ्लाईबनना हैं… खूब उड़ना हैं। बाहर जाना होगा दोस्त।

मत जाओ न मैं अकेले कैसे रहूँगा… सीड ने कहा।

सीड, तुमको बहुत सारे दोस्त मिलेंगे – खूब सारी चिड़िया आएँगी… मैं भी वापस आउंगी पर इसके लिए तुमको ट्री बनना होगा। बटरफ्लाई भी चली गयी।

सीड बहुत उदास हुआ। अब अकेले रहना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था। उसके दोनों फ्रेंड्स तो बड़े होने के लिए, कुछ सीखने के लिए चले गए थे। एक दिन सीड ने हिम्मत की और मिटटी में थोड़ा ऊपर गया। सूरज की तेज रौशनी से उसकी आँखें बंद हो गयी। पर उसने सोच लिया था की अब तो उसे ट्री बनना ही हैं। वो वैसे ही बैठा रहा। थोड़ी देर में बादल घिर आये बारिश होने लगी। सीड के आस पास की मिटटी गीली होने लगीं थी। बारिश रुकी तो गीली मिटटी से उसको गुदगुदी होने लगी। सीड को बड़ा मजा आया। वो आराम से सो गया। सुबह उठा तो देखता क्या हैं उस में से एक छोटी सी रूट निकल आयी हैं। और फिर धीर-धीरे उसमे से २ पतियाँ भी निकल आयी। सूरज की रौशनी से वो बेकार ही डर रहा था! कितनी अच्छी लगती हैं धूप जब पत्तियों पर पड़ती हैं। धूप तो कितना प्यार से सीखा रही है उसको ट्री बनना। धूप बहुत अच्छी टीचर होती हैं। अगर वो धूप के पास नहीं आता तो कैसे सीखता ये सब !

धीरे-धीरे सीड पौधा बन गया और फिर एक दिन पेड़ बन गया। उस पर मीठे-मीठे ऑरेंजज भी आने लगें। उसकी डालियों पर खूब सारी चिड़ियाँ आती थी। एक दिन उसको अपनी स्टैम पर गुदगुदी सी महसूस हुई उसने झुक कर देखा तो अरे! ये तो एक फ्रॉग था!!

क्यों दोस्त मुझे पहचाना?? मैं हूँ तुम्हारा वो टैडपोल!

ट्री उसको देख कर ख़ुशी से झूम उठा! दोनों ने खूब बातें की इतने में उड़ती-उड़ती एक बटरफ्लाई भी आ गयी। हेलो दोस्तों! पहचाना मुझे? दोनों बोले अरे कैटरपिलर तुम!!! कितने सुन्दर हो गए हो!  तीनों दोस्त फिर से मिल गए थे और फिर वो ख़ुशी-ख़ुशी हमेशा साथ रहे।

“वाउ!!! सब हैप्पी हैप्पी हो गए!!” गुड़िया ने ख़ुशी से तालियाँ बजायी।

प्यार से गुड़िया के गाल थपथपाते हुए मम्मा ने कहा, “अच्छा गुड़िया कल ना कल हम एक सीड ग्रो करेंगे। उसको बोलेंगे डरना नहीं। ग्रो होना बहुत अच्छी बात होती हैं न !” 

सच्ची मम्मा हम सीड ग्रो करेंगे!! वाउ!!!

अगले दिन हमने एक गमले में बीज बोया। गुड़िया ने उसे बहादुर सीड की स्टोरी भी सुनाई! “सीड तुम डरना मत! तुम जरूर ग्रो होना। ट्री कैसे बनते हैं वो तुमको सनलाइट सीखा देगी। सनलाइट तुम्हाली मैडम हैं न।”

गुड़िया हर रोज उत्सुकता से गमले को देखती और सीड को कहती ग्रो हो जाओ सीड… डरो मत. तुमको ट्री बनना हैं न फिल तुमको खूब सारे फ्रेंड्स मिलेंगे। 4-5 दिन में वो बीज अंकुरित हो गया। मिटटी के ऊपर नन्ही सी कोम्पल झांक रही थी।

मम्मा!! मम्मा!!! देखों सीड ग्रो हो गया!! सीड नहीं डरा… वो नहीं डरा…मम्मा वो ग्रो हो गया…!!!  गुड़िया की ख़ुशी का ठिकाना ना था !

अरे वाह! सीड तो हमारी गुड़िया जैसा बहादुर हैं!! मम्मा ने गुड़िया को हाई फाइव देते हुए कहा।

मैं और सीड फ्रेंड हैं न मम्मा? 

हाँ बिलकुल हो। और अब सीड और गुड़िया दोनों ग्रो होंगे। सीड को उसकी टीचर सिखाएगी और गुड़िया को उसकी टीचर ! है न ?

अले…पल पहले मेले को स्चूल तो भेजो फिल सीखूंगी न! गुड़िया ने नकली सा सिर पीटते हुए कहा और मम्मा और गुड़िया दोनों हंस पड़े और खूब देर हँसते रहे।

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बच्चों की कल्पना शक्ति और ग्राह्यता बहुत अधिक होती हैं, इसीलिए जो कुछ भी आप उन्हें कहानियों के रूप में उन्हें सुनाते हैं, वे अपने दिमाग में उसे “सच में जी रहे होते हैं”  याद रखिये के उनके मन के छोटे छोटे डर आपके लिए “छोटे” होते हैं, उनके लिए नहीं!  उनके जीवन में जो कुछ चल रहा हो, वे छोटी छोटी उलझने जो नन्हे मन को परेशान कर रही हों और आप समझ न पा रहे हों के इतनी साधारण सी बातें उन्हें कैसे समझाएं… तो कहानियों का सहारा लीजिये. कहानी सुनाते समय या सुनाने के बाद उन्हें यह न पूछें के “तो क्या समझे तुम ?” या “अब पता चला तुम्हारा डर बेकार था” क्योकि आपकी ये जल्दबाज़ी सारे मामले को ही उलटा सकती हैं. आपका काम हैं उन्हें सोच सकने के लिए “मसाला” देना…और उनकी सोच को दिशा देना… बस. आपका सतत  प्रयास और थोड़ा सा धैर्य चमत्कार कर सकता हैं. आजमाइएगा… और अनुभव जरूर साझा कीजियेगा. 

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