परवरिश (Parenting)

कुछ बातें जो चाइल्ड साइकोलोजिस्ट चाहते हैं कि आप जानें।

हमारे समाज में बच्चों के व्यवहार के लिए परिवार और खास तौर पर माँ को सीधे-सीधे जिम्मेदार माना जाता है। बच्चे के व्यवहार में एक बात ज़रा ऊपर-नीचे दिखी और हर कोई आपकी परवरिश पर सवाल खड़े करने लगता है। जब भी बच्चे अस्वाभाविक व्यवहार करते हैं तब आमतौर पर सुनने को मिलते हैं कुछ जुमले. -तुम बच्चों को कुछ ज्यादा ही दुलारती रहती हो..

-तुम बच्चों से ठीक से प्यार नहीं करती.

-तुम बहुत कठोर रहती हो.

-तुम कुछ ज्यादा ही बात मानती हो बच्चों की.

-तुम कुछ ज्यादा ही जज़्बाती हो.

-तुम में ना भावनाएं ही नहीं हैं.

-तुमने कुछ ज्यादा ही आज़ादी दे रखी है.

-तुम ना हर वक़्त बच्चोंं के सर पर ही रहती हो.

-तुम ना बच्चोंं की ठीक से तारीफ नहीं करती हो.

-तुम बच्चोंं की कुछ ज्यादा ही तारीफ करती रहती हो…ये सूची अंतहीन हो सकती हैं !

लोगों के इस रवैये का परिणाम यह होता हैं की बच्चे के स्वभाव से चिंतित माता पिता या तो गुस्से से भरे रहते हैं या शर्म और ग्लानि से, या अपनी सफाई देते रहते हैं और स्कूल, टीवी, आजकल के माहौल को इलज़ाम दे कर अपनी कुंठा निकालते हैं। इन सबके चलते सबसे बुरा यह होता हैं कि बच्चे को वह व्यवहार, वह माहौल, वह सहायता नहीं मिल पाती जिसकी उसे वास्तव में जरुरत होती हैं।

इसलिए तीन ऐसी बातें हैं जो आपको जाननी और समझनी आवश्यक हैं :

  • बच्चों के जीवन में भी वैसे ही उतार चढ़ाव आते हैं जैसे की बड़ों के जीवन में, पर जब ये मुश्किलें उनकी दिनचर्यां में परेशानी खड़ी करने लगे तो आपको इस ओर विशेष ध्यान देने की जरुरत हैं।ध्यान एकाग्र करने में दिक्कत, अव्यवस्थित रहना, छोटी छोटी बातों पर परेशान रहना, नींद न आना – ये ऐसे लक्षण हैं जो बच्चों में कभी न कभी देखने को मिलते ही हैं। पर यदि –

– ये लक्षण उसकी उम्र के हिसाब से ज्यादा बार हो रहे हैं

– ये लक्षण बच्चे की उम्र से अधिक गंभीर हैं

-इनकी वजह से बच्चे की दिनचर्या प्रभावित होने लगी हैं

अगर ये तीनों चीजें हो रही हैं तो आपको बाल मनोवैज्ञानिक से मिलने की आवश्यकता हैं।

  • 2 साल की आयु के बच्चोंं में भी चिंता (anxiety) या व्यवहारिक विकार (behavioral disorder) के लक्षण दिख सकते हैं -कुछ मनोविकारों जैसे की ऑटिस्म में बच्चोंं में ये लक्षण सिर्फ 6 माह की आयु में भी दिख सकते हैं।
  • जब साइकोलोजिस्ट आपको परवरिश से जुड़े कुछ सुझाव देतें हैं तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि आप अब तक सब गलत कर रहे थे और बच्चे की स्थिति के लिए आप ही जिम्मेदार हैं।

हर बच्चा अपने आप में अलग होता हैं। आपके दो बच्चे भी एक जैसे नहीं हैं इसलिए जरुरी नहीं की जो तरीका एक के साथ कारगर रहा वही दूसरे के साथ भी सही रहेगा। कई बार विशेष स्थितियों में बच्चे के साथ कुछ समय तक एक विशेष व्यवहार करना थेरेपी का हिस्सा होता हैं, इसलिए भी साइकोलोजिस्ट आपको अपने व्यवहार में कुछ बदलाव करने का सुझाव देते हैं।

वैसे ही जैसे अगर डॉक्टर बताये कि आपके बच्चे को किसी चीज से एलर्जी है और आपको अपना खाना बनाने का तरीका बदलना होगा तो इसका अर्थ ये नहीं होता कि अब तक आप गलत तरह से खाना बना रहे थे या आपके खाना बनाने के तरीके के कारण बच्चे को एलर्जी हुई होगी। पर अपने तरीके को बदल कर आप बच्चे को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।

हो सकता हैं आपका बच्चा किन्ही मुश्किलों से गुज़र रहा हो शायद कुछ हफ़्तों से…. महीनों से या हो सकता हैं कुछ सालों से। उसकी परेशानी दोस्तों से जुडी हो सकती हैं, स्कूल का कोई तनाव हो सकता हैं, हो सकता हैं आपका परिवार किसी मुश्किल दौर से गुज़र रहा हो और घर का तनाव उसके मन को बहुत अधिक प्रभावित कर रहा हो। ये भी संभव हैं की इन में से कोई भी स्पष्ट कारण नहीं दिख रहा हो पर फिर भी आपके बच्चे का हर वक़्त का चिड़चिड़ापन या गुमसुम रहना आपको परेशान कर रहा हो। कारण सोच सोच कर परेशान हो जाने के बावजूद भी बाल मनोवैज्ञानिक (child psychologist) से मिलने के बारे में सोचना हमारे देश में आज भी सहज नहीं हो सका हैं।

बहुत से माता पिता को बच्चे को साइकोलोजिस्ट के पास ले जाने के ख़याल से भी डर लगता हैं। क्या पता साइकोलोजिस्ट के पास जाने से बात और भी बिगड़ जाये, क्या पता बच्चे को लगने लगे की वह पागल हैं, और कहीं वह सारी ज़िन्दगी ही उसके इलाज़ पर निर्भर न हो जाये, और क्या पता साइकोलोजिस्ट हमारी परवरिश को ही दोष दे दे !

इतने छोटे बच्चे को साइकोलोजिस्ट के पास ले जाना ही ये साबित करता हैं की हमें बच्चे पालना ही नहीं आता।मैं आपके अंतिम सवाल का जवाब सबसे पहले देती हूँ: नहीं, बच्चे को साइकोलोजिस्ट के पास ले जाने का अर्थ ये बिलकुल भी नहीं है कि आप अच्छे माता पिता नहीं बन सकें! बल्कि, ये बताता हैं की आप कितने सजग माता पिता हैं जो अपने बच्चे की अनकही मुश्किलों को न सिर्फ देख और समझ रहे हैं बल्कि उसके लिए सही समय पर सही और कुशल मार्गदर्शक भी खोज रहे हैं। बाल मनोवैज्ञानिक (Child Psychologist) कभी भी आपके बच्चे के लिए “आप” नहीं हो सकता। माता पिता की यह महत्वपूर्ण भूमिका तो सदा आपकी ही रहेगी।

मनोवैज्ञानिक(Child psychologist) बच्चे के जीवन में आपकी जगह नहीं लेगा बल्कि वह आपके और आपके बच्चे के रिश्तें को और भी सुन्दर और मजबूत करेगा। वह दोस्त हैं, मार्गदर्शक हैं, और विचारों का शल्य चिकित्सक (thought surgeon) हैं जिसके पास बच्चों के विकास, रिश्तों और मनोविज्ञानिक शोध की गहरी समझ हैं।बहुत बार लोग साइकोलोजिस्ट के पास इसलिए भी नहीं जाते कि उन्हें लगता हैं ये इतनी भी गंभीर बात नहीं हैं… पर अगर ये इतनी गंभीर बात न होती तो इसे सुलझाने में इतना समय भी न लग रहा होता! सही साइकोलोजिस्ट से आपको और आपके बच्चे को मजबूत और अच्छी स्थिति में आने में सहायता मिलती हैं।सारी उलझन फिर से इसी एक “सही साइकोलोजिस्ट” की खोज पर आ जाती हैं।

जैसे आप बहुत सारे डॉक्टर्स में से अपने बच्चे के लिए एक अच्छा डॉक्टर तलाशते हैं जिसके साथ आप सहजता से बात कर सकें और जिस पर आप विश्वास कर सकें। उसी तरह आपको अपने बच्चे के लिए सही साइकोलोजिस्ट का चुनाव भी करना होता हैं। कैसे चुनें सही साइकोलोजिस्ट? जानेंगे अगली पोस्ट में।

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