पुरानी कहावत है कि चावल पक गए हैं या नहीं यह जाँचने के लिए चावल का एक दाना देख लेना काफ़ी होता है। सारे चावलों को दबा कर “परखने” की ज़रूरत नहीं होती। परखने की इस “तकनीक” के हम इतने क़ायल हैं कि सामने चावल हो या इंसान सभी के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल करने लगते हैं। आप कह सकते हैं, “हमारे पास बुद्धि है, बरसों का अनुभव है, तो क्या सामने वाले को “परखें” भी ना? अगर इतना भी न कर सकें तो फिर किस काम का सारा ज्ञान!”
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