भावनाएं उबाल पर होती हैं तो तर्कबुद्धि की बात नहीं सुनना चाहती, कभी भावनाओं की टीम बहुत डरी हुई होती हैं, तर्कबुद्धि उन्हें अपने लिए स्टैंड लेने को कहती हैं पर भावनाएँ साथ नहीं देती। बुद्धि और भावनाओं के बीच अंतर्द्वंद शुरू हो जाता हैं। भावनाएँ यानि हार्मोन्स की बटालियन और तर्क बुद्धि यानि विचारों का एक पूरा जंजाल। जब भावनाएँ अपनी तरफ खींचती हो और तर्क बुद्धि अपनी तरफ. ऐसे में निर्णय कौन ले? यही समय है जब मामला सुपर बॉस के पास जाना चाहिए।
मनःस्थली (Mental Health)