अध्यात्म (Spiritualism)

नियति अटल है पर भाग्य रचयिता है हम !

परिस्थितियां अटल है और फिर भी भाग्य रचयिता मैं हूँ ! कैसे?

आइये इसे एक साधारण समीकरण से समझते हैं।

भाग्य =  नियति  + वर्तमान कर्म 

‘नियति’ यानि वे परिस्थितियां जो हमारे सामने हमारी इच्छा अनिच्छा के बिना आती हैं।

‘वर्तमान कर्म’ यानि उन परिस्थितियों के आने पर जो “जो हम करते हैं, कहते हैं और सोचते हैं” वे सभी हमारे कर्म हैं।

किसी परिस्थिति के आने पर हमारी प्रतिक्रिया से जो स्थिति उत्पन्न होती है वो “भाग्य” कहलाता हैं।

यानि हमारी चाहे या अनचाहे जो हालात बनें वो नियति (fate) हैं और उस परिस्थिति  में हमारे व्यवहार / प्रतिक्रिया के बाद जो स्थिति बनती हैं वह भाग्य (destiny)  हैं।

कुछ उदाहरण देखते हैं – 

1. कोई नया काम सीखना शुरू किया, जैसे ड्राइविंग।  आपने गाड़ी चलना करीब करीब सीख लिया, एक दिन किसी और की गलती के कारण एक छोटी सी दुर्घटना हो गयी। छोटी सी दुर्घटना पर आपका आत्मविश्वास डोल गया… आस पास के लोगों ने भी कहा छोड़ो तुम्हारे बस की बात नहीं हैं, पता हैं कितना बड़ा हादसा हो सकता था…! सुन कर आपका आत्मविश्वास और भी हिल गया। और आप सोच लेते हैं की नहीं मुझे ड्राइविंग करनी ही नहीं हैं। 

उस दिन की छोटी सी दुर्घटना “नियति” थी ! होना था…. हो गया।  पर उस घटना के बाद आप का निर्णय की अब आप ड्राइविंग नहीं करेंगे ये आपका भाग्य बन गया। आत्मविश्वास की कमी ने आपको ड्राइविंग करने से रोका और आपने मान लिया की मेरे भाग्य में ही नहीं हैं गाड़ी चलाना।

छोटी सी बात थी, जो भी घटना हुई उसमे सबक भी था कि कैसी स्थिति आ सकती हैं ड्राइव करते समय, और कैसे सूझबूझ से उस स्थिति को सम्हालना हैं। लोगों के कुछ भी कहने से फर्क नहीं पड़ता। मुझे पता हैं मुझे क्या करना हैं और कैसे करना हैं और आगे से क्या क्या ध्यान रखना हैं और नतीजा..? आप और भी सजग और बेहतरीन ड्राइवर बनते हैं !

2. कभी बच्चे से कोई गलती हो गयी और आपने डांट-डपट कर उसे उस काम को करने से हमेशा के लिए वंचित कर दिया। जिमनास्टिक सीखना चाहता है आपका बच्चा या स्विमिंग सीखना चाहता हैं पर आप इन्हें खतरनाक खेल मानते है, बच्चे को भी डरा देते है की चोट लग जाती हैं, बहुत दर्द होगा, ऐसे जोखिम वाले काम नहीं करने चाहिए। बच्चा हैं, जो आपने कहा उसने मान लिया। यहाँ नियति ने बच्चे में कुछ अच्छा सीखने का अवसर और चाह उत्पन्न की पर आपकी सोच और प्रतिक्रिया ने उसका भाग्य रच दिया !

ऐसे ही अनेकों उदाहरण मिल सकते हैं हमें रोजमर्रा के जीवन में जब हमारे सामने विकल्प होते हैं की हम कैसे प्रतिक्रिया दें और हमारी यही प्रतिक्रिया रचती हैं हमारा भाग्य !

क्या हमारी प्रतिक्रियाएं भी निश्चित होती हैं? कुछ हद्द तक… हाँ। हमारी प्रतिक्रियाएं हमारे स्वभाव द्वारा नियंत्रित होती हैं। स्वभाव तो जिसका जैसा है वैसा हैं, कहा भी गया हैं की एक बार जो स्वभाव बन जाये तो फिर जीवनपर्यन्त साथ रहता हैं। तो यानि हम अपने स्वभाव के अधीन हैं तो फिर भाग्य रचियता तो नहीं हो पाए। जहाँ स्वयं को अपने स्वभाव के अधीन मान लिया वहीँ  चूक जातें हैं हम !

हमारा स्वभाव यानि हमारे सोचने और व्यवहार करने का ढंग। कैसे बनता हैं स्वभाव? और किस हद्द तक मेरे हाथ में है मेरे स्वभाव का निर्माण। जानेंगे अगले अगले आलेख “भाग्य रचयिता के औजार – संस्कार” में.

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