कहाँ से हो कर जाता हैं “विवेक” का रास्ता
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पिछले आर्टिकल (मिलिये मन के बॉस से) में हमने जाना के मन की दोनों टीमों भावनाओं और तर्क बुद्धि के बीच जब अन्तर्द्वन्द छिड़ जाये तो मामला इन के सुपर बॉस विवेक यानी wisdom के हाथ में सौंप देना चाहिये। लेकिन विवेक तक पहुँचना इतना सरल…सहज नहीं हैं।
हम विवेक तक पहुँचाने वाली उस ख़ुफ़िया व्यवस्था के बारे में जाने इस से पहले यह जान लीजिये के विवेक कोई चमत्कारी शक्ति नहीं है जो अचानक से प्रकट होती हैं और सब संभाल लेती हैं।
विवेक यानी स्थिर चित्त/ स्टेबल माइंड
एक स्थिर चित्त अपने सारे रीसॉर्सेज़ का इस्तेमाल बेहतर तरीक़े से कर सकता है। आपके रीसॉर्सेज़ यानी आपकी knowledge, आपके अब तक के अर्जित अनुभव, वो सारे skills जो आपके सीखे है, सही और ग़लत को पहचान सकने की आपकी क़ाबलियत।
ये सब आपके रीसॉर्सेज़ है।
लेकिन किसी भी तरह के अंतर्द्वंद में फँसा मन “व्याकुल” अवस्था में होता है और ऐसे में वह वो सब भी नहीं सोच पाता जो उसे पहले से पता है। ये ठीक वैसा ही है जैसे आप हर रोज़ अपनी किचन में कुशलता से खाना बनाती है लेकिन किसी दिन अगर आप बहुत तनाव में है, या जल्दबाज़ी में काम करना पड़ रहा हो तो चाकू से आपकी अंगुली कट जाती है, या कड़ाही में गर्म तेल से अपना हाथ जला बैठती है। आपको ऑफ़िस के लिए देर हो रही है रास्ते में ट्रैफ़िक ज़्यादा है ज़रूरी मीटिंग शुरू होने वाली है… बरसों से गाड़ी चलाने वाले आप, रेड लाइट वाला सिग्नल देखने से चूक जाते है या किसी से टकरा जाते है!
आप कुशल है, ये सब आपके अनाड़ी होने की निशानियाँ नहीं है ये आपके तनाव में होने की निशानियाँ है! ये आपके हड़बड़ी में होने की निशानियाँ है।
परिवार में आप पर आक्षेप लगाये जा रहे है, आपके ख़िलाफ़ एक तरह से गुट-बन्दी हो गयी है आपकी बेचैनी बढ़ती जा रही है और आप जो कभी अनर्गल नहीं बोलते, आज आवेश में आ कर बहुत कुछ अनर्गल बोल जाते है। आपकी एक चूक से सब कुछ आपके ख़िलाफ़ चला जाता हैं।
ये सारी स्थितियाँ वे थी जब चित्त को स्थिर रखने की ज़रूरत थी। यह समय संतुलन खोने का नहीं था। पर भावनाएँ विचलित थी, बुद्धि यह प्रमाणित करने में लगी थी मैं सही हूँ जब अंदर इतने तूफ़ान चल रहें हो तो कौन रखता मन को स्थिर?
प्रकृति हमें यूँ डावाँडोल रहने के किए कैसे छोड़ देती? मन को उसकी स्थिरता लौटा देने का दायित्व प्रकृति में हमारे ही शरीर के एक सिस्टम को सौंपा है और इसका नाम है – श्वसन तन्त्र यानी respiratory system, वही, जिसका काम है साँस लेना।
साँस तो अपने आप आती रहती है। ये इतना साधारण सा काम है के इस ओर कभी ध्यान ही नहीं जाता।
अगर आप ध्यान नहीं देंगे तो आपकी साँसे सिर्फ ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का आदान प्रदान करवाने का काम करती रहेंगी लेकिन, अगर, आप ध्यान देंगे तो ख़ुफ़िया दरवाजा खुल जायेगा ! दरवाजा जो आपको सीधे मन के सुपर बॉस यानि विवेक के पास ले जायेगा।
हमारी ये आती जाती साँसे बहुत कमाल की चीज़ हैं! अपनी साँसों को साधारण मत समझिये। श्वास को साधने से कई रोग ठीक हो जाते हैं, प्राणायाम अपने आप में एक चिकित्सा पद्धति हैं। एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में 12-15 बार श्वास लेता हैं। बहुत स्ट्रेस में रहने वाले लोगों की श्वसन दर 15-20 साँसे प्रति मिनट हो सकती हैं। प्रति मिनट आप कितनी बार सांस लेते हैं यह बताता हैं के आपका चित्त कितना स्थिर हैं। आपकी श्वास जितनी लम्बी गहरी और लय में होगी आपके दिमाग की क्षमताएँ उतनी ही ज्यादा होंगी। यदि श्वास की लय पर नियंत्रण लाते हुए प्रति मिनट 12 से कम पर श्वास स्थिर हो जाये तो कई विलक्षण क्षमताएँ भी जागृत होने लगती हैं।
योग साधना विज्ञानं कहता हैं के अगर इंसान अपनी श्वास दर को 11श्वास /मिनट पर ले आये तो वह अपने आस पास के पशु-पक्षियों द्वारा दिए जा रहे सिग्नल्स को समझने लगता हैं। अगर यह दर 9 श्वास/मिनट पर आ जाये तो वह इस धरती पर प्रकट हो रहे हर सिग्नल (मौसम, पेड़-पौधों से आ रहे सिग्नल्स को भी) समझने लगता हैं, और अगर यह दर 7 श्वास/मिनट हो जाये तो इस समूचे संसार के अस्तित्व में कुछ भी ऐसा शेष नहीं रहता जो आपसे छुपा रह सके!
याद रखिये श्वास को जबरन धीमा करने से यह सब नहीं होने लगेगा क्योंकि आप हर समय इस पर ध्यान केंद्रित नहीं रख पाएंगे। प्राणायाम के जरिये आप अपनी श्वास दर को कुछ समय के लिए कुछ हद तक धीमा कर सकते हैं। एक लम्बे अभ्यास के बाद यह होगा के आपकी श्वसन दर स्वाभाविक रूप से धीमी होती जाएगी। प्राणायाम के लिए हर रोज निकाले गए दस मिनट भी, फिलहाल आप जिस स्थिति में हैं आपको उस से बहुत बेहतर स्थिति में ला सकते हैं।
हमारी साँसे हमारे शरीर के अंदर के मौसम पर निर्भर करती हैं और हमारे शरीर का मौसम हमारी सांसों पर निर्भर करता हैं। आपको पता हैं हमारे शरीर के अंदर का भी एक मौसम होता हैं ?? होता हैं 🙂
और ये जो हमारी साँसे हैं ये भी एक तरह की हवाएँ ही हैं और हवाएँ बहुत तेज चलें तो मौसम बिगड़ जाया करते हैं और तूफान के आसार बन जाते है! शरीर के भीतर का ये मौसम कैसा हैं और इसमें आने वाले तूफानों को कैसे संभालना हैं इस पर अगले आर्टिकल में बात करेंगे 🙂
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