घड़ियाँ प्रतीक्षा की हो या निर्णय की, दोनों में ही मन का स्थिर और शांत रहना बहुत जरुरी हैं। धैर्य के बिना की गयी प्रतीक्षा, और विवेक के बिना लिए गए निर्णय, दोनों ही नुकसानदेह साबित होते हैं! यानि हर परिस्थिति का सामना करना के लिए हमें मन को स्थिर और शांत बने रहने की ट्रेनिंग देनी हैं।
कैसे दें?
जिंदगी वैसी होती हैं जैसा हमारा मन उसे महसूस करता हैं। मन को वश में करने का मतलब ये नहीं हैं के उस से कुछ भी महसूस करने के अधिकार छीन लिए जाएँ, उसे रूखा सा कर के रख दें बल्कि मन को वश में करने का मतलब होता हैं उसे ट्रांसफॉर्म करना, रूपान्तरित करना, यानी उसकी प्रोग्रामिंग को बदल कर उसे मजबूत बनाना।
और ये जो साँसें आप ले रहे हैं न यही हैं आपके मन की इंजीनियर! जो सारी coding को बदल के रख देगी। कैसे?
मन का अंतर्द्वंद सिर्फ अनिर्णय की अवस्था ही नहीं देता, अनचाहे निर्णय लेने को बाध्य भी करता हैं. इसका असर सिर्फ हमारी भावनाओ पर ही नहीं पड़ता बल्कि शरीर के अंदर का पूरा मौसम इसकी चपेट में आता है. शरीर के सभी अंग एक निश्चित तरह की प्रोग्रामिंग के तहत काम करते हैं तो शरीर के भीतर का मौसम संतुलित बना रहता हैं। शरीर के अंदर का मौसम यानी…
ये सारी स्थितियाँ वे थी जब चित्त को स्थिर रखने की ज़रूरत थी। यह समय संतुलन खोने का नहीं था। पर भावनाएँ विचलित थी, बुद्धि यह प्रमाणित करने में लगी थी मैं सही हूँ जब अंदर इतने तूफ़ान चल रहें हो तो कौन रखता मन को स्थिर? मन को उसकी स्थिरता लौटा देने का दायित्व प्रकृति में हमारे ही शरीर के एक सिस्टम को सौंपा है और इसका नाम है…
भावनाएं उबाल पर होती हैं तो तर्कबुद्धि की बात नहीं सुनना चाहती, कभी भावनाओं की टीम बहुत डरी हुई होती हैं, तर्कबुद्धि उन्हें अपने लिए स्टैंड लेने को कहती हैं पर भावनाएँ साथ नहीं देती। बुद्धि और भावनाओं के बीच अंतर्द्वंद शुरू हो जाता हैं। भावनाएँ यानि हार्मोन्स की बटालियन और तर्क बुद्धि यानि विचारों का एक पूरा जंजाल। जब भावनाएँ अपनी तरफ खींचती हो और तर्क बुद्धि अपनी तरफ. ऐसे में निर्णय कौन ले? यही समय है जब मामला सुपर बॉस के पास जाना चाहिए।