ये सारी स्थितियाँ वे थी जब चित्त को स्थिर रखने की ज़रूरत थी। यह समय संतुलन खोने का नहीं था। पर भावनाएँ विचलित थी, बुद्धि यह प्रमाणित करने में लगी थी मैं सही हूँ जब अंदर इतने तूफ़ान चल रहें हो तो कौन रखता मन को स्थिर? मन को उसकी स्थिरता लौटा देने का दायित्व प्रकृति में हमारे ही शरीर के एक सिस्टम को सौंपा है और इसका नाम है…
भावनाएं उबाल पर होती हैं तो तर्कबुद्धि की बात नहीं सुनना चाहती, कभी भावनाओं की टीम बहुत डरी हुई होती हैं, तर्कबुद्धि उन्हें अपने लिए स्टैंड लेने को कहती हैं पर भावनाएँ साथ नहीं देती। बुद्धि और भावनाओं के बीच अंतर्द्वंद शुरू हो जाता हैं। भावनाएँ यानि हार्मोन्स की बटालियन और तर्क बुद्धि यानि विचारों का एक पूरा जंजाल। जब भावनाएँ अपनी तरफ खींचती हो और तर्क बुद्धि अपनी तरफ. ऐसे में निर्णय कौन ले? यही समय है जब मामला सुपर बॉस के पास जाना चाहिए।
कौन हैं मन? दिल? दिमाग? या इन दोनों से अलग कोई तीसरी चीज…?? मन के साथ जुडी सबसे दिलचस्प बात ये है के इस नाम मन कोई ऑर्गन हमारे शरीर में है ही नहीं लेकिन फिर भी ये मन, हमारे शरीर के हर एक अंग को, हर एक सिस्टम को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। […]
“माँ मेरे लिए लड़कियाँ देखना बंद करो मैं आपसे कह चुका हूँ मैं शादी नहीं कर सकता। क्यों नहीं कर सकता ये भी बता चुका हूँ।” नरेश की तल्ख़ आवाज़ घर में गूँज गयी। सरिता जी की रुलाई फूट गयी थी अब। समझा समझा कर थक गयी इस लड़के को। 6 फिट का ऊँचा लम्बा […]
“मम्मा मैं कहाँ से आया…??” एक ऐसा सवाल जो हर बच्चा कभी न कभी पूछता जरूर है और जिसे सुन कर मम्मा थोड़ा सा घबरा जाती हैं… पापा जरा संभल कर बैठ जाते हैं और फिर सकुचाये लहज़े से सारा जिम्मा भगवान जी पर या परियों पर, या बड़े पंखों वाले सफ़ेद हंस पर डाल […]