संसार से भागे फिरते हो…भगवान् को तुम क्या पाओगे इस लोक को भी अपना न सके…उस लोक में भी पछताओगे 1964 में आयी फिल्म चित्रलेखा का यह गीत संन्यास की सार्थकता पर एक गहरा मन-मंथन प्रस्तुत करता हैं। ईश्वर कण-कण में हैं तो उसकी खोज के लिए संसार छोड़ने की क्या आवश्यक्ता हैं? सब छोड़ […]
अपनी ही उलझनों में फिरें भरमाया.. दुःख के वेश में आया हैं सुख! मेरे मन तूं पहचान ना पाया…” ‘होनी हो कर रहती हैं कोई शक्ति इसे बदल नहीं सकती’ सुना हैं न ये ? पर किसको कहते हैं ‘होनी’… किस्मत को? और.. किस्मत मतलब ? ‘जो कुछ हमारे साथ हो रहा हैं… वही तो […]
पृथ्वी से लाखों करोड़ो मील दूर स्थित ग्रह मेरे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं! कैसे..? मैं कितनी भी कड़ी मेहनत करूँ, मैं अपने कार्य में कितना भी कुशल क्यों न हूँ, ग्रह निर्धारित करेंगे कि मुझे सफल होना हैं या असफल..? मेरे रोग ग्रहों की वजह से हैं! मेरे संबंधों में कड़वाहट ग्रहों की वजह […]
व्यक्ति का व्यवहार उसके स्वभाव से ही नियंत्रित होता हैं, सही बात हैं। कोई भी आत्मा अपने संस्कार ले के आती हैं, ये भी सही हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने इन्ही गुणों के अनुसार व्यवहार करते हैं। ये गुण भी प्रकृति से ही मिलते हैं और प्रकृति ईश्वर की रचना हैं इसलिए ईश्वर द्वारा दिए गए […]
परिस्थितियां अटल है और फिर भी भाग्य रचयिता मैं हूँ ! कैसे? आइये इसे एक साधारण समीकरण से समझते हैं। भाग्य = नियति + वर्तमान कर्म ‘नियति’ यानि वे परिस्थितियां जो हमारे सामने हमारी इच्छा अनिच्छा के बिना आती हैं। ‘वर्तमान कर्म’ यानि उन परिस्थितियों के आने पर जो “जो हम करते हैं, कहते हैं […]